मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से करीब 8 कि.मी. दूर, क्षिप्रा नदी के तट पर कालभैरव मंदिर स्थित है. कालभैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है. प्राचीन समय में यहाँ सिर्फ तांत्रिको को ही आने की अनुमति थी. वे ही यहाँ तांत्रिक क्रियाएँ करते थे. कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया. भगवान भैरव को केवल मदिरा का भोग लगाया जाता है. काल भैरव को मदिरा पिलाने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है.
भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फैसला किया, तो उन्हें इस काम से रोकने के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए. ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी. इस पर शिवजी ने क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव को प्रकट किया. इस उग्र स्वभाव के बालक ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी का पांचवां मस्तक काट दिया.
इससे लगे ब्रह्म हत्या के पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली. तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की. शिव ने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी. तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है.
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