ये है वो ख़ास जगह जहाँ सर ढँक कर किया जाता है नमस्कार

हिन्दू धर्म में हर छोटी-छोटी चीज की बहुत मान्यता है जिसमे अगर नमस्कार की बात करें तो ये जहाँ शालीनता को प्रकट करता है तो वही धार्मिक दृष्टी से भी इसका काफी महत्व है दोस्तों नमस्कार करना हिन्दुओं तथा भारतीय सभ्यता का एक अहम हिस्सा है नमस्कार करने से हमारी संस्कृति का पता चलता है, दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करना ही सभ्यता का प्रमाण है, व्यक्ति किसी से तभी नमस्कार करता है जब वो किसी से मिलता है या विदा लेता है व्यक्ति जब अपने बड़ो से मिलता है तो वह पैर छु कर नमस्ते करता है या अपने माता पिता से मिलता है या कहीं बाहर जाता है तो वह पैर छूकर नमस्ते करता है.

यदि आप किसी को नमस्कार करते हों अच्छी भावना के साथ दोनों हाथो को जोड़कर नमस्कार बोलकर करना चाहिए. उस समय आपकी आँखे बंद रहना चाहिए ऐसा करने से मन को शान्ति और ख़ुशी मिलती है, नमस्कार करते समय हाथों में कोई वस्तु नहीं होनी चाहिए. यदि जब हमसे कोई मिलता है जैसे यार दोस्त वगेरा तो हम उनसे हाथ मिलाकर या गले मिलकर नमस्ते का भाव प्रकट करते है. एक नमस्कार मंदिर में भगवान को किया जाता है उन्हें या तो चरण स्पर्श या माथा टेक कर नमन किया जाता है. अपने से बड़े बुजुर्गो, माता पिता, और गुरुओं के चरण छु कर नमस्ते करना चाहिए, मंदिर में प्रवेश करते समय जूते चप्पल नहीं पहनना चाहिए, और यदि आप मंदिर जा रहे हों तो प्रवेश करते समय सबसे पहले उनके द्वार पर उनको प्रणाम करना चाहिए फिर मंदिर के अन्दर दोनों हथेलियों को छाती के पास जोड़कर पीठ को आगे की तरफ झुकाएं और पैरों में चप्पल व जूते पहने बिना नमन करें. हनुमान जी के मंदिर और कालिका माता के मंदिर में सभी को सर ढक कर ही नमस्कार करना चाहिए.

 

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