नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि जब दुनिया के विभिन्न देशों के लोग जॉनसन एंड जॉनसन के दोषपूर्ण हिप रिप्लेसमेंट इम्प्लांट की शिकायत कर रहे थे तब यूपीए सरकार ने फरवरी 2010 में उसे भारत में आयात करने की इजाजत दी। वहीं बता दें कि कुछ महीनों पहले ही कंपनी ने अपने इन रिप्लेसमेंट इम्प्लांट को ऑस्ट्रेलिसा से वापस मंगवा लिया था। सड़क हादसे में झाबुआ के महिला बाल विकास अधिकारी की मौत वहीं बता दें कि अपने हलफनामे में केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन का कहना है कि बेशक हिप रिप्लेसमेंट इम्प्लांट उत्पाद को ऑस्ट्रेलिया में मिली कई शिकायतों के बाद दिसंबर 2009 में ही वापस ले लिया गया था, जेएंडजे ने भारत में आयात लाइसेंस के लिए 11 जनवरी 2010 में आवेदन किया। जिसे कि सरकार ने 18 फरवरी 2010 को मंजूर कर लिया। महेश भूपति ने कहा- डेविस कप में इटली को हराने का यह सबसे अच्छा मौका गौरतलब है कि सीडीएसओ को 23 सितंबर 2009 में सूचित करने के बाद कि उसके हिप इम्प्लांट उत्पाद की गुणवत्ता को लेकर पिछले तीन सालों में कोई शिकायत नहीं आई है जेएंडजे ने 8 मार्च 2010 को एक फील्ड सेफ्टी नोटिस जमा करवाया। इसमें उसने सीडीएसओ को बताया कि हिप इम्प्लांट के उत्पादों की सर्जरी की दरों को बढ़ा दिया गया है। वहीं बता दें कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ब्राजील से अगस्त 2010 में जेएंडजे ने मेटलिक हिप इम्प्लांट के उत्पादों को वापस मंगवा लिया था। वहीं इसके बाद उसने सीडीएसओ को 24 अगस्त 2010 को सूचित किया कि वह भारत से अपने उत्पादों को वापसी कर रहा है। इसके साथ ही डॉक्टर अरुण अग्रवाल की समिति ने जिन्होंने इस मसले की जांच की, उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जेएंडजे उन मरीजों को पर्याप्त मुआवजा नहीं दे रही है जिनका दोषपूर्ण हिप इम्प्लांट हुआ था। खबरें और भी सुप्रीेम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा, कितने लोग आना चाहते हैं हिंदुस्तान तेलंगाना: केसीआर ने अपने बेटे को बनाया टीआरएस का अध्यक्ष बर्फीली हवाओं से गिरा दिन का तापमान, आगे ऐसा रहेगा मौसम