कारगिल विजय दिवस : पिता-पुत्र ने एक साथ पाकिस्तान को चटाई थी धूल

26 जुलाई 1999 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। यह वहीं दिन है जब पाक के ख़िलाफ़ 2 माह से अधिक समय तक लड़ी लंबी लड़ाई में भारत ने विजयी परचम लहराया था। कारगिल युद्ध में भारत के कई जवानों ने अहम भूमिका अदा की थी और कई जवानों ने अपने प्राणों की आहुति तक दे दी थी।  

साथ में लड़ें थे पिता और पुत्र, बेटा हुआ शहीद : कारगिल युद्ध से कई तरह की यादें जुड़ीं हुई है। हमारे जांबाजों के किस्से आज भी ख़ूब प्रसिद्द है।  एक पिता-पुत्र की जोड़ी तो ऐसी थी, जिन्होंने साथ में मिलकर कारगिल की जंग लड़ीं थी। लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) गोबिंद सिंह बिष्ट और उनके बेटे लेफ्टिनेंट हेमंत सिंह महर बिष्ट की कहानी सभी में नई ऊर्जा भरने का काम करती है। कारगिल युद्ध के दौरान गोबिंद सिंह और लेफ्टिनेंट हेमंत सिंह अलग-अलग स्थानों पर जिम्मेदारियां संभाल रहे थे, हालांकि दोनों का डिवीजन एक ही था। कारगिल युद्ध में भारत को सफलता मिली। इसके बाद पुनः लेफ्टिनेंट कर्नल गोबिंद सिंह अपनी बटालियन में जा चुके थे। हालांकि एक ओर लेफ्टिनेंट हेमंत कारगिल ऑपरेशन के बाद भी सरहद पर सीना ताने खड़े रहे, ऐसा इसलिए क्योंकि पाक इसके बाद भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था। तब 18 सितंबर 2000 को एक कमांडो टीम को सीमा पार जाने के लिए कहा गया। दुश्मन को सबक सीखाना जरूरी था। इसमें सफल रहने के बाद हेमंत के सीने में दुश्मनों ने सात गोलियां उतार दी। माँ भारती के लिए एक और बेटा प्राणों की आहुति दे चुका था। मरणोपरांत हेमंत को शौर्य चक्र मिला, जिसे उनके पिता गोबिंद सिंह ने ग्रहण किया था। 

क्यों मनाया जाता है विजय दिवस ?

भारतीय सैनिकों की विजयगाथा के लिए इस दिन का चयन किया गया था। 26 जुलाई 1999 के दिन कारगिल युद्ध में भारत की विजय की आधिकारिक घोषण हुई थी। पाक के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने को भारत ने ऑपरेशन विजय नाम दिया था और जब हम इसमें सफल रहे तो 26 जुलाई का दिन कारगिल विजय दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया।  

 

 

क्यों मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस, कैसे हुई युद्ध की शुरुआत ?

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