तो इस वजह से भगवान कृष्ण को करना पड़ा था रुक्मणि से विवाह

भगवान कृष्ण व उनकी पत्नी रुक्मणि के विषय में सभी जानते है माना जाता है कि माता लक्ष्मी ने ही रुक्मणि के रूप में जन्म लिया था लेकिन क्या आप जानते है कि भगवान् कृष्ण व रुक्मणि का विवाह कैसे हुआ था? आइये विस्तार से जानते है. उन दिनों भगवान कृष्ण और बलराम कि ख्याति सभी दिशाओं में फ़ैल रही थी उसी समय विदर्भ में राजा भीष्मक का शासन चलता था राजा भीष्मक के पांच पुत्र व एक पुत्री थी जिसका नाम रुक्मणि था. रुक्मणि का रूप व तेज देखकर सभी उन्हें माता लक्ष्मी का स्वरुप मानते थे किन्तु राजा भीष्मक का पुत्र शिशुपाल था जो भगवान् कृष्ण को अपना शत्रु मानता था और उनसे शत्रुता रखता था उसने अपने पिता से कहकर रुक्मणि का विवाह तय कर दिया था जिसके विषय में जानकर रुक्मणि बहुत दुखी हो गई थी. और उन्होंने एक ब्राहमण के हांथों से भगवान कृष्ण को सन्देश भेजा जिसमे लिखा था..

हे नंदन में मन ही मन आपको पति के रूप में स्वीकार कर चुकी हूं इसलिय में आपके आलावा किसी अन्य पुरुष से विवाह नहीं कर सकती तथा मेरी इच्छा के बिना ही मेरे भाई मेरा विवाह अन्य कहीं करना चाहते है और हमारे कुल में जिस किसी का भी विवाह होता है वह विवाह से पूर्व नगर के बाहर गिरजा मंदिर दर्शन के लिए अवश्य जाता है में भी वहां दर्शन करने जाउंगी आप वहां आकर मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करें अन्यथा में अपने प्राणों का त्याग कर दूंगीं.

जब भगवान् कृष्ण को यह सन्देश मिला तो वह तुरंत अपने रथ पर सवार होकर रुक्मणि को लेने के लिए निकल पड़े उन्होंने अपने रथ में उस ब्राह्मण को भी बिठा लिया. दूसरी तरफ रुक्मणि विवाह के वस्त्रों को धारण कर मंदिर पहुंची वहां कृष्ण को न पाकर उन्होंने माता गिरजा से भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने कि प्रार्थना करने लगी.

रुक्मणि जैसे ही मंदिर से पूजा करके बाहर निकली उनकी नजर उस ब्राह्मण पर पहुंची जिसे उन्होंने भगवान् कृष्ण के पास भेजा था उस ब्राहमण को देख उन्हें समझने में जरा भी देर नही लगी कि भगवान् कृष्ण उन्हें लेने के लिए आ गए है जैसे ही वह अपने रथ में बैठने के लिए आगे बढ़ी भगवान् कृष्ण ने उनका हांथ खींच कर अपने रथ में बैठा लिया और द्वारका के लिए वायु वेग से निकल पड़े. तथा द्वारका पहुंचकर पूरे विधि विधान के साथ रुक्मणि से विवाह किया.

 

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