क्या आप जानते है कि शालिग्राम और तुलसी के विवाह के बारे में
क्या आप जानते है कि शालिग्राम और तुलसी के विवाह के बारे में
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प्राचीन काल से ही भारत में कई प्रकार के रीती-रिवाजों का प्रचलन रहा है जिसमे त्यौहारों का भी विशेष महत्व है इन्ही त्यौहारों में से एक त्यौहार है जिसे देवउठनी ग्यारस कहा जाता है इस त्यौहार को दीपावली के ग्याहरवें दिन मनाया जाता है तथा तुलसी व शालिग्राम का का विवाह किया जाता है. क्या आप जानते है कि इस दिन यह विवाह क्यों किया जाता है और इसके पीछे क्या रहस्य है आइये जानते है.

एक समय कि बात है दम्भ नाम का एक राक्षस था जो भगवान विष्णु कि भक्ति में लीन रहता था लेकिन उसके जीवन में संतान कि कमी थी जिसकी प्राप्ति के लिए वह दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास गया और शुक्राचार्य ने उसे एक मन्त्र देकर कहा कि तुम पुष्कर जाकर भगवान विष्णु कि आराधना करो. गुरु की बात मानकर वह पुष्कर के एक स्थान पर जाकर भगवान विष्णु कि घोर तपस्या करने लगा जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे एक प्रतापी पुत्र होने का वरदान दिया. कुछ समय बाद जब उस राक्षस के घर पुत्र ने जन्म लिया तो उसने उसका नाम शंखचूर्ण रखा.

समय बीतता गया और शंखचूर्ण भी बड़ा हो गया अपनी राक्षसी प्रवृत्ति के कारण वरदान पाने की चाह में शंखचूर्ण ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप करने लगा. उसकी तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर उसके समक्ष प्रगट हुए और उसे वरदान मांगने को कहा. तब उसने ब्रह्मा जी से कहा कि मुझे ऐसा वरदान चाहिए कि मुझे कोई देव, दानव, मानव, किन्नर कभी नहीं मार पायें. उसके यह बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा कि यदि तुम बदरीवन जाकर धर्मध्वज की पुत्री जो वहां तपस्या कर रही है उससे विवाह कर लोगे तो तुम्हे तुम्हारे अनुसार कोई भी नहीं मार पायेगा.

तब शंखचूर्ण ने बदरीवन जाकर तुलसी से गन्धर्व विवाह किया जिसे स्वयं ब्रह्मा जी ने करवाया. अब शंखचूर्ण को ज्ञात था कि उसका वरदान फलीभूत हो गया है. तब उसने देवता को पराजित कर स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया. स्वर्ग से वंचित होने के बाद इन्द्रदेव ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे शंखचूर्ण कि मृत्यु का रहस्य पूंछा तब ब्रह्मा जी ने कहा कि उसे केवल भगवान शिव ही मार सकते है. इस बात को जानकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और शंखचूर्ण को मारने का अनुरोध किया. सभी देवताओं कि बात सुनकर भगवान् शिव ने अपने एक दूत चित्ररथ को शंखचूर्ण के पास भेजा और उसे स्वर्ग छोड़ने को कहा.

किन्तु शंखचूर्ण ने भगवान् शिव के इस संदेस को ठुकरा दिया जिससे नाराज होकर भगवान शिव शंखचूर्ण को मारने के लिए निकल पड़े और दोनों में युद्ध होने लगा लेकिन अपनी पत्नी तुलसी के सतीत्व के कारण शंखचूर्ण को पराजित करना आसान नहीं था और अंत में जब भगवान शिव ने अपना त्रिशूल उठाया तब एक आकाशवाणी कि जब तक शंखचूर्ण की पत्नी अपने पतिव्रत धर्म का पालन करती रहेगी तब तक भगवान शिव भी शंखचूर्ण को मार नहीं सकते.

 

इस आकाशवाणी को सुनकर भगवान् विष्णु ने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूर्ण से उसका दिव्य कवच मांग लिया और इसके पश्चात वह शंखचूर्ण का वेश धारण कर उसकी पत्नी तुलसी के पास पहुंचे तथा तुलसी का सतीत्व भंग किया. जिसके बाद भगवान् शिव ने अपने त्रिशूल से शंखचूर्ण का वध कर दिया. किन्तु जब इस बात कि जानकारी तुलसी को हुई तो उसने भगवान् विष्णु को श्राप दिया कि वह भी पत्थर रूप में परिवर्तित हो जाएंगे.

तब भगवान् विष्णु ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि में तुम्हारी अनन्य भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं इसीलिए में तुम्हे बैकुंठ चलने की अनुमति देता हूं और तुम्हारा शरीर गण्डकी नदी के नाम से जाना जाएगा तथा तुम एक पवित्र पौधा तुलसी में परिवर्तित हो जाओगी. तथा में हमेशा तुम्हारे तट पर पत्थर बनकर रहूँगा. और उस नदी के जीव नदी में उपस्थित पत्थर को काटकर एक चक्र का निर्माण करेंगे जिसे शालिग्राम के नाम से जाना जाएगा व किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने के पूर्व उसकी सफलता के लिए तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाएगा.

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