श्रीनगर में शिया समुदाय ने 33 साल बाद निकाला मुहर्रम का ताजिया, मुस्लिम बहुल इलाके में किस बात का था डर ?

श्रीनगर: क्या मुस्लिम बहुल इलाके में मुस्लिम लोग ही खौफ में हो सकते हैं ? यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यह सच है। दरअसल, 33 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर की गलियों से मुहर्रम का ताजिया निकाला गया। मुस्लिम बहुल राज्य होने के बावजूद 1989 के बाद से शिया मुस्लिम, अपनी मान्यता के अनुसार मुहर्रम का जुलूस नहीं निकाल पा रहे थे। दरअसल, सुन्नी मुस्लिम ताजिया निकालने और कर्बला की जंग में इमाम हुसैन की शहादत पर मातम मनाने को गलत बताते हैं, लेकिन यह शिया मुस्लिमों की परंपरा है। यही जम्मू कश्मीर में भी टकराव की वजह बना था।

दरअसल, 1989 में एक आदेश जारी करते हुए श्रीनगर के डलगेट मार्ग से ताजिया निकालने पर रोक लगा दी गई थी। इसी रास्ते में लाल चौक भी आता है। मगर, आज यानी 27 जुलाई 2023 को इस रास्ते से शिया मुस्लिमों ने 33 साल बाद अपने पारम्परिक तरीके से मुहर्रम का जुलूस निकाला। सैकड़ों लोग इसमें शामिल हुए। यह दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन कर, अनुच्छेद 370 को रद्द कर और आतंकवाद पर ताबड़तोड़ एक्शन लेकर मोदी सरकार ने किस प्रकार इस घाटी की स्थिति को बदलने का प्रयास किया है। अब प्रदेश का प्रत्येक तबका भय मुक्त होकर जी रहा है। हालाँकि, कुछ आतंकी अब भी इस शांति में खलल डालने की साजिशों से बाज़ नहीं आ रहे हैं, उनसे भारतीय सेना के वीर जवान निपट रहे हैं । कश्मीर के अतिरित्क पुलिस महानिदेशक IPS विजय कुमार ने मीडिया से बातचीत में बताया कि शिया समुदाय बीते काफी समय से मुहर्रम के जुलूस की इजाजत माँग रहा था, लेकिन सुरक्षा कारणों के चलते उन्हें मंजूरी नहीं मिल रही थी। प्रशासन ने इस बार अनुमति देते हुए सुरक्षा के पर्याप्त बंदोबस्त किए थे। वहीं, कश्मीर के कमिश्नर वी के भिदुरी के अनुसार, वर्किंग डे में अन्य लोगों की सुविधा के मद्देनज़र जुलूस के लिए सुबह 6 से 8 बजे के बीच 2 घंटे का वक़्त तय किया गया था। भिदुरी ने इस जुलूस की इजाजत को प्रशासन का ‘ऐतिहासिक कदम’ करार दिया। 

 

मुहर्रम का वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में सैकड़ों की तादाद में शिया मुस्लिम, शहीद गंज से डलगेट वाली सड़क पर जुलूस निकालते नज़र आ रहे हैं। उनके हाथों में मजहबी झंडे हैं। मौके पर सुरक्षा बल के जवान और प्रेस रिपोर्टरों भी मौजूद है। जुलूस में कुछ बुर्कानशीं महिलाएँ भी शामिल हुईं थीं। प्रशासन द्वारा तय किए गए वक़्त पर यह जुलूस शांतिपूर्वक सम्पन्न हुआ। इस जुलूस की इजाजत देने के दौरान रखी गई शर्तों में उत्तेजक नारेबाजी, आतंकियों या उनके संगठनों की तस्वीरें, किसी भी स्तर पर प्रतिबंधित किया गया LOGO, कोई प्रतिबंधित झंडा आदि न ले जाना शामिल था। बता दें कि वर्ष 1989 में मोहर्रम के जुलूस में कुछ आतंकी घुस गए थे और उन्होंने भारत विरोधी नारे लगाना शुरू कर दिया था। नारे लगाने वालों में भारतीय वायुसेना के अफसरों का हत्यारा यासीन मलिक, जावेद मीर और हमीद शेख शामिल बताए गए थे। तत्कालीन गवर्नर जगमोहन ने तब एक आदेश जारी करते हुए शहीदगंज से डलगेट वाले मार्ग पर जुलूस निकालने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद से ही शिया मुस्लिम मुहर्रम जुलुस निकालने के लिए अनुमति की मांग कर रहे थे और अब 370 हटने, आतंकवाद कम होने के बाद उन्हें आख़िरकार अनुमति मिल ही गई।

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