भारत बंद की एक और शर्मनाक तस्वीर

2 अप्रेल को हुए भारत बंद में एक तरफ जहाँ कुछ दलित संविधान का हवाला देकर संविधान को बचाने की बात कर रहे थे वहीं इन लोगों में कुछ मानवता को बेचते हुए नजर आये. मानवता को बेचने में फायदा किसी नहीं हुआ लेकिन जिन 9 मौतों के बाद उन घरों में जो मातम पसरा हुआ है उसकी जिम्मेदारी किसकी? 

वैसे तो इस बंद का असर पुरे देश भर में जगह-जगह देखने को मिला लेकिन व्यापक तौर उत्तरी भारत की जो तस्वीरें देखने को मिली है, वह अंदर तक हिला देने वाली है. उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में उपद्रवियों ने एक एम्बुलेंस को रोककर उसे हॉस्पिटल जाने से रोका जिसके बाद उसमें बैठे एक वृद्ध शख्स को उसका बेटा कंधे पर ले जाते हुए दिखाई दिया. 

वहीं कई तस्वीरों में लोग सब्जी की दुकानें, गरीबों की ठेलागाड़ी तक तोड़ते हुए दिखाई दिए. भारत बंद के दौरान लोगों को हिंसा की नदी में बहकर खुद की संवेदनाएं बेचते हुए देखा गया जो देश को बहुत शर्मसार करते है. आंदोलन में आड़ में जब इस तरह की हिंसात्मक गतिविधियां हो तो वह आंदोलन, आंदोलन नहीं रह जाता वह दंगे की शक्ल अख्तियार कर लेता है. इस आंदोलन की आड़ में कई चेहरे खुद का राजनीतिक भविष्य तलाश कर रहे है तो बहुत से हिंसा का रस ले रहे थे. हर किसी को इसके बाद सोचना चाहिए कि असल में हम कहाँ जा रहे है. 

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