इंदिरा-राजीव सरकार में जयशंकर के पिता के साथ क्या हुआ था ? पहली बार विदेश मंत्री ने किया खुलासा

नई दिल्ली: विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने एक इंटरव्यू में कई मुद्दों पर खुलकर बात की। इस दौरान विदेश मंत्री ने बताया कि किस प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और फिर राजीव गाँधी के कार्यकाल के दौरान उनके पिता डॉ.के. सुब्रमण्‍यम के साथ अन्याय हुआ था। इंटरव्यू के दौरान जयशंकर ने बताया कि विदेश मंत्री का पद दिए जाने के साथ उन पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने का कोई दबाव नहीं था।

 

इस दौरान जयशंकर ने विदेश सचिव (Foreign Secretary) से लेकर विदेश मंत्री (Foreign Minister) बनने तक के सफर पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने बताया कि वे ब्यूरोक्रेट्स के परिवार से आते हैं और हमेशा एक शानदार ऑफिसर बनना चाहते थे। अपने पिता को याद करते हुए जयशंकर ने जानकारी दी है कि उनके पिता सचिव पद (1979) तक पहुँच गए थे। एस जयशंकर ने मुताबिक, जब 1980 में इंदिरा गाँधी की सरकार बनी, तो उनके पिता 'के जयशंकर' को उनके पद से हटा दिया गया। 

विदेश मंत्री ने बताया कि, उनके पिता  के जयशंकर उस समय डिफेंस प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में सचिव थे। जयशंकर ने बताया कि उनके पिता संभवतः पहले सचिव थे, जिन्हें इंदिरा गाँधी ने सरकार बनने के बाद सबसे पहले पद से हटाया था। एस जयशंकर ने जानकारी दी है कि राजीव गाँधी के पीएम रहते हुए भी के. जयशंकर को अनदेखा किया गया और उनके जूनियर को कैबिनेट सचिव बनाया गया। विदेश मंत्री ने कहा है कि उनके पिता एक ईमानदार व्यक्ति थे, हो सकता है इसके कारण ही समस्या हुई हो। उसके बाद वो कभी सचिव नहीं बने। 

जयशंकर ने बताया कि परिवार में इस बात को लेकर कभी बात तो नहीं हुई, मगर जब उनके बड़े भाई सचिव बने, तो पिता बहुत खुश हुए थे। बाद में एस. जयशंकर भी विदेश सचिव बने, हालाँकि उस समय तक उनके पिता का देहांत हो चुका था। पिता ने भले ही उन्हें सचिव के पद पर नहीं देखा, किन्तु पिता के रहते जयशंकर ग्रेड वन तक पहुँच चुके थे, जो सचिव के बराबर का ही रैंक होता है।

इंटरव्यू में एस. जयशंकर ने अपने विदेश सचिव से विदेश मंत्री बनने तक के घटनाक्रम पर भी बात की। उन्होंने बताया कि खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हें 2019 में कैबिनेट का हिस्सा बनने के लिए फोन किया था। जयशंकर ने कहा कि यह पूरी तरह से हैरान कर देने वाला था। उन्होंने कहा कि इस दौरान उन्हें भाजपा में शामिल होने को लेकर दबाव नहीं डाला गया। एस जयशंकर ने कहा कि भाजपा ज्वाइन करने का फैसला उनका अपना था। उन्होंने कहा कि यह फैसला आसान नहीं था, किन्तु अपने उत्तरदायित्व के ईमानदारी के साथ निर्वहन और नेतृत्व का सहयोग प्राप्त करने के लिए उन्होंने भाजपा को चुना।

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