सेक्युलर मंच ने शिवसेना के गुंडों के हमले की भर्त्सना की भोपाल के कोई 30-35 जागरूक नागरिक सोमवार शाम चंद मिनटों के नोटिस पर समवेत हुए. गाँधी भवन में हुई इस सभा में सुधीन्द्र कुलकर्णी पर शिवसेना के गुंडों द्वारा किए गए हमले की तीखे शब्दों में भर्त्सना की गई। सभा का आयोजन राष्ट्रीय सेक्युलर मंच ने किया था। इसमें पारित प्रस्ताव में देश में बढ़ती असहिष्णुता की घटनाओं पर चिंता प्रगट की गई. साथ ही कहा गया कि भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना की राजनीतिक सहयोगी है, यदि भाजपा शिवसेना की हरकतों की भर्त्सना कर रही है तो उसे चाहिए कि वह इस प्रतिक्रियावादी संगठन से अपना नाता तोड़ ले। प्रस्ताव को पेश करते हुए मंच के संयोजक एल.एस. हरदेनिया ने कहा कि अनेक सांप्रदायिक तत्व, योजनाबद्ध तरीके से ऐसा वातावरण निर्मित कर रहे हैं जिससे बोलने व लिखने की स्वतंत्रता दिन-प्रतिदिन सिमट रही है। यह एक खतरनाक प्रक्रिया है, जिससे देश की धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक व्यवस्था की जड़ें कमज़ोर हो रही हैं। बैठक में ऐसे तत्वों के विरूद्ध लंबा अभियान चलाने का निर्णय लिया गया। सभा में भोपाल के राजेश जोशी समेत उन तमाम साहित्यकारों और लेखकों का अभिवादन किया गया जिन्होंने देश में बढ़ रहे असहिष्णुता के वातावरण के विरूद्ध अपना आक्रोश प्रगट करने के लिए साहित्य एकेडमी सम्मान को वापिस किया है। बैठक में इस बात पर चिंता प्रगट की गई कि केंद्र सरकार इस तरह के तत्वों को नियंत्रित करने की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन नहीं कर रही है। बैठक में शैलेन्द्र शैली, दीपक भट्ट, कलाकार मनोज कुलकर्णी, ट्रेड यूनियन नेता एम.एम. शर्मा, गोविंद सिंह असिवाल, रूप सिंह चैहान, आनंदमोहन मिश्रा, जेपी. दुबे, साहित्यकार ओम भारती, रमाकांत श्रीवास्तव, पूर्णचन्द्र रथ, महेन्द्र सिंह, अशोक निर्मल, पत्रकार राकेश दीवान, पूर्णन्दु शुक्ल, कैलाश आदमी, राजु कुमार, फादर मारिया स्टीफन एवं अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष, इब्राहिम कुरैशी शामिल थे। सिर्फ एक घटना पर साहित्यकारों के द्वारा वर्षो की मेहनत के बाद प्राप्त सम्मानो को लौटा देना ...क्या?..एक मात्र उपाय है जब आपका उद्देश्य "देश में बढ़ रहे असहिष्णुता के वातावरण के विरूद्ध अपना आक्रोश प्रगट करने का है" अब आगे होने वाली घटनाओं के लिए क्या लौटायेंगे ? इसलिए इन कदमो से लोगो की भावनाओ को समझ सकते है, परन्तु इसका इस्तेमाल राजनीति व व्यक्तिवाद के स्वार्थ के लिए ज्यादा होता है ....हमारे "वैज्ञानिक-विश्लेष" "नई शुरुआत मीडिया के द्वार से" ) को दुबारा पढ़े जहा हम एक नई व्यवस्था बनाना चाहते है जो भविष्य में भी प्रत्येक घटना पर अपनी प्रतिक्रिया दे ..निर्णय का अधिकार जनता के पास ही रहेगा क्यूंकि सिर्फ एक संगठन की सोच के आधार पर "देश" का निर्माण नहीं होता | हमने "परिवारवाद" के आगे "सामूहिक संगठन" बनाना सीखा उसके बाद आरक्षण व अन्य जातिगत मुद्दो से "सामाजिक संगठन" बनाना सीखा फिर तकनीक के माध्यम से राजकीय सोच को मिटा राष्ट्रीयत की तरफ आगे बढ़ गए अब समय है कई संगठनो को आपस में मिल सोच को "राष्ट्रीयता" की बनाये.