जयपुर: राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक साधने के लिए महिला सशक्तिकरण की बात तो जोर-शोर से करती है यहां तक कि सरकार बनने पर भी इसके लिए कई तरह की योजनाएं बनाई जाती हैं. राजस्थान में वसुंधरा राजे के शासनकाल में भी महिलाओं की योजनाओं के लिए काफी बजट तो आवंटित हुआ था, लेकिन उस बजट का उपयोग सरकार नहीं कर पाई. करोड़ों के बजट के बड़ा भी महिला अधिकारिता की कई सारी बड़ी योजनाएं जमीनी स्तर पर उतर ही नहीं पाई. उत्तराखंड में शुरू हुआ पतंजलि का पहला परिधान शोरूम इन योजनाओं में सबसे बुरी हालत चिराली योजना की है. चार करोड़ से ज्यादा की लागत होने के बाद भी चिराली योजना में मात्र 28,000 खर्च हो पाए. इसके अलावा चार दूसरी बड़ी योजनाओं में भी केंद्र की तरफ से बजट भरपूर आवंटित हुआ, लेकिन खर्च नाम मात्र का ही हुआ. चिराली योजना में 0.06 प्रतिशत, स्वयं सहायता समूह संस्थान योजना में 7.5 प्रतिशत खर्च, महिला सुरक्षा योजना में मात्र 7 प्रतिशत, बेसिक केयर कोर्स में मात्र 0.78 प्रतिशत और विजयाराजे सिंधिया स्वयं सहायता समूह योजना में केवल 15 प्रतिशत आवंटित बजट ही खर्च हो पाया. कुल मिलकर अगर 5 योजनाओं की बात करें तो इन सबमे आवंटित हुए बजट केवल 6 प्रतिशत ही खर्च हो पाया. देश के वित्तीय और पूंजी बाजार को साइबर अटैक से बचाएगा यह सॉफ्टवेयर उल्लेखनीय है कि राजस्थान में महिलाओं के लिए 5 योजनाओं में 10 करोड़ 80 लाख से अधिक का बजट आवंटित हुआ था, लेकिन उसमें से केवल 75 लाख रुपए ही खर्च हो सके थे. राजस्थान में कांग्रेस की सरकार आते ही सबसे पहले महिलाओं के लिए शुरू की गई इन योजनाओं पर एक्शन लिया गया, प्रदेश की महिला बाल विकास मंत्री ममता भूपेश ने इन योजनाओं के जल्द क्रियान्वन के लिए अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं, ताकि महिलाओं को उनका हक़ मिल सके. खबरें और भी:- लगातार तेजी के बाद अब सोने की कीमतों में भारी गिरावट इस बार दिव्यांगों की प्रतिभाओं से रूबरू करवाएगा राष्ट्रीय पुस्तक मेला प्रसार भारती ने लिया ऑल इंडिया रेडियो के राष्ट्रीय चैनल को रोकने का निर्णय