कटाक्ष: जाति है कि जाती नहीं

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुलिस की गोली से एक कंपनी के मैनेजर की हत्या के मामले पर जाति का मुलम्मा चढ़ाया जा रहा है। हमारे तथाकथित रहनुमा इस मामले को जातिए रंग देने से बाज नहीं आ रहे हैं। एक के बाद एक  ऐसे बयान आ रहे हैं, जिन्हें देखकर तो यही लगता है कि एक आम आदमी की नहीं बल्कि किसी जाति की हत्या कर दी गई हो। 

ऐसे नेता, जो जाति—धर्म से इतर की राजनीति करने के नाम पर राजनीति में आए थे, वही अब जातिगत राजनीति में उतर आए हैं। धर्म और मजहब से हटकर अब  जाति—​जाति का खेल खेला जा रहा है। एक आम आदमी की मौत पर सियासत की यह जाति समझ से परे है। परिवार का मुखिया मारा गया, उसके बीबी—बच्चे परेशान हैं, लेकिन हमारे राजनेताओं को इसमें एक मौका दिख रहा है जातिकरण करने का।  वह इस तरह से जाति—जाति कर रहे हैं कि लग रहा है जैसे एक व्यक्ति की हत्या अपराध  नहीं बल्कि जाति की ज्यादती है। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद  केजरीवाल, जिन्हें जनता के बेहतरीन राजनेता के तौर पर वोट दिया था, उन्होंने तो राजनीति की नीचता का परिचय दे दिया है। केजरीवाल ने अपने ट्विटर पर परिवार को संवेदना देना तक उचित नहीं समझा और कहा कि मारा गया व्यक्ति ​विवेक हिंदू था फिर उसे ​क्यों मारा गया? केजरीवाल यहां पर भी हिंदू—मुस्लिम करने से बाज नहीं आए। वहीं मायावती ने मारे गए व्यक्ति की जाति ब्राह्मण होने को लेकर राजनीति की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार में ब्राह्मण सुरक्षित नहीं है। 

दरअसल, इस तरह की बयानबाजी के पीछे आगामी चुनाव हैं और यह राजनेता जातिगत राजनीति करके अगले चुनावों में अपना वोट बैंक बढ़ाना चाहते हैं। वोट बैंक की यह जाति  इतनी ढीठ है कि ​किसी की मौत पर भी यह जाती ही नहीं। हमारे तथाकथत रहनुमाओं को तो बस अपनी राजनीति चमकाने और अपनी खिचड़ी पकाने से मतलब है फिर चाहे वह राजनीति किसी परिवार के आंसुओं से  चमके या राजनीति की वह खिचड़ी किसी मजलूम की लाश की आग से पकाई जाए...

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