सैनिकों से बर्बरता के बीच पाकिस्तान से बातचीत क्यों?
सैनिकों से बर्बरता के बीच पाकिस्तान से बातचीत क्यों?
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पाकिस्तानी सेना ने एक बार फिर भारत के एक जवान के साथ ​बर्बरता की है। शहीद हेमराज के बाद अब पाकिस्तानी सेना ने बीएसएफ में हेड कांस्टेबल के पद पर तैनात नरेंद्र सिंह की निर्ममता से हत्या कर दी। सिंह की लाश बीएसएफ के जवानों को जंगल में मिली। पाकिस्तानी सैनिक आतंकी उनकी दोनों आंखे निकाल ले गए और उनके साथ काफी बर्बरता की। एक जवान के साथ इस निर्ममता को लेकर देश के हर नागरिक का खून खौल रहा है और वह पाकिस्तान के साथ ​जैसे को तैसा वाला तरीका अपनाने की बात कह रहे हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि भारत सरकार की आंख के आंसू सूख चुके हैं और देश की रक्षा करने वाले रक्षकों के साथ इस बर्बरता को वह साधारण मानती है, तभी तो वह पाकिस्तान के साथ बातचीत को  तैयार है। 

दरअसल, एक तरफ जहां पाकिस्तानी सेना हमारे सैनिक के साथ ऐसी बर्बरता कर रही थी, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के वजीर—ए—आजम ​इमरान खान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर बातचीत के लिए न्योता दे रहे थे। अब न्योता दिया है, तो हमारे सहृदय प्रधानमंत्री इसे मना कैसे करते। आखिर जब वे 2016 में बिन बुलाए पाकिस्तान जा सकते हैं, तो फिर यह तो खुला आमंत्रण है, सो सरकार को इसे स्वीकार करना ही था।  विदेश मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की कि न्यूयॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा बैठक में भारत और पाकिस्तान के विदेश मं​त्रियों की मुलाकात होगी। वैसे जब 2016 में  पीएम मोदी बिना बुलाए ही पाकिस्तान गए थे, तो पाकिस्तान ने पठानकोट पर आतंकी हमला कर उन्हें तोहफा दिया था। अब अपने एक सैनिक की शहादत पर मोदी सरकार बातचीत की इमारत खड़ी करना चाहती है, तो न जाने कितने हमले देश को भुगतने पड़ेंगे। 

लेकिन  सरकार को इससे क्या? मोदी सरकार  तो अपनी सहृदयता दिखाते हुए पाक को गले लगाने आतुर हो रही है? अब न्यूयॉर्क में मुलाकात होगी और खबर आएगी कि भारत ने कठोर रुख में पाकिस्तान को ऐसी घटनाओं के प्रति चेतावनी दी। लेकिन यहां सवाल यह है कि ऐसी चेतावनियों से क्या फायदा, जिनका उत्तर एक और हमले के तौर पर मिले? आखिर एक बात  समझ नहीं आती कि ऐसी क्या मजबूरी है, जो मोदी सरकार अपने ​सैनिकों की शहादत को भूलकर पाक से हाथ मिलाने को बेताब है? 

लगता है कि मोदी सरकार को शहीदों की शहादत और नागरिकों की भावनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे तो केवल अपनी राजनीति चमकानी है और विश्व पटल पर एक बेहतरीन प्रधानमंत्री ​के तौर पर मोदी को स्थापित करना है, ताकि आगे आने वाले चुनावों में जनता उनकी बेहतर प्रधानमंत्री की छवि को स्वीकार कर  उन्हें वोट दे। फिर भले ही वोट देश के रक्षकों की लाशों पर ही क्यों न हासिल करने पड़े।

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