छठ पूजा पर सूर्य को अर्घ्य देते हुए करें इन मंत्रों का जाप, पूरी होगी हर मनोकामना

सनातन धर्म में प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है। षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। छठ पूजा का आरम्भ नहाए खाय से होता है तथा अगले दिन खरना मनाया जाता है। छठ पूजा का त्योहार बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित देश कई भागों में धूमधाम के साथ मनाते हैं। मान्यता है कि छठ पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली का आगमन होता है। वहीं, इस वर्ष नहाए खाए के साथ यानि 17 नवंबर से लोकआस्था का महापर्व आरम्भ हो रहा है जो कि 20 नवंबर तक चलेगा। इस के चलते विधि विधान अनुसार पूजा करने से छठ पूजा संतान प्राप्ति, संतान सुरक्षा एवं सुखमय जीवन के लिए भक्त पूरी श्रद्धा से करते हैं। 

छठ पूजा मंत्र:- ॐ मित्राय नम:, ॐ रवये नम:, ॐ सूर्याय नम:, ॐ भानवे नम:, ॐ खगाय नम:, ॐ घृणि सूर्याय नम:, ॐ पूष्णे नम:, ॐ हिरण्यगर्भाय नम:, ॐ मरीचये नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ सवित्रे नम:, ॐ अर्काय नम:, ॐ भास्कराय नम:, ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:

सूर्यदेव मंत्र:- आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते।।

अर्घ्य मंत्र:- ऊँ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।। ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि।।

छठ पूजा आरती:-  जय छठी मैया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुग्गा मंडराए। मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।। जय।। ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदिति होई ना सहाय। ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।। जय।। मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए। ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।। जय।। अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडरराए। मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।।जय।। ऊ जे सुहनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय। शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।। जय।। मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए। ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।।जय।। ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए। मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।।जय।। ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय। सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।।जय।। मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए। ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।।जय।।

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