हनुमान जी ने नहीं बल्कि माता पार्वती ने जलाई थी रावण की सोने की लंका

इस समय रामायण देखना लोग बहुत अधिक पसंद कर रहे हैं. आप जानते ही हैं इस समय कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन हुआ है इस कारण कोई नए शो की जगह पुराने शोज दिखाए जा रहे हैं. इन्ही में शामिल है रामायण. वहीं आज हम आपको रामायण से जुड़ा एक ऐसा राज बताने जा रहे हैं जो आपने शायद ही पहले कभी सुना या पढ़ा होगा. जी दरअसल कहते हैं रावण की पूरी लंका सोने की बनी थी और रावण ने अपनी लंका की खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिए सीता जी से शादी करना चाहा था लेकिन यह संभव ना हो सका. हम सभी जानते ही है कि रावण ने सोने की लंका बनाई थी, और हनुमान जी ने लंका को जलाया था लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सोने की इस लंका को हनुमान जी ने नहीं, बल्कि मां पार्वती ने जलाया था. जी हाँ, आइए जानते हैं कहानी.

एक पौराणिक मान्यता के एक बार लक्ष्मी जी और विष्णु जी भगवान शिव-पार्वती से मिलने के लिए कैलाश पर गए और कैलाश से जाते वक्त उन्होंने मां पार्वती और शिवजी को बैकुण्ठ आने का न्योता दिया. जब मां पार्वती लक्ष्मीजी से मिलने बैकुण्ठ धाम गई तो वहां का वैभव देखकर उनमें ईर्ष्या की भावना घर कर गई. इसके बाद मां पार्वती ने भगवान शिव से महल बनवाने का हठ किया. उसके बाद भगवान शिव ने पार्वती जी को भेंट करने के लिए कुबेर से दुनिया का अद्वितीय महल बनवाया.जब रावण की नजर महल पर पड़ी तो वो उसे लेना चाहा. सोने का महल लेने की इच्छा को लेकर रावण ब्राह्मण का रूप धारण कर अपने इष्ट देव भगवान शिव शंकर के पास गया और भिक्षा में उनसे सोने के महल की मांग की. भगवान शिव को भी पता था कि रावण उनका बड़ा भक्त है. द्वार आए अतिथि को खाली हाथ लौटाना धर्म शास्त्रों में गलत बताया गया. इससे अतिथि का अपमान होता है. कहा जाता है जब भगवान शिव ने रावण को सोने की लंका को दान में दे दिया तो ये बात मां पार्वती को अच्छी नहीं लगी. वो गुस्सा हो गई.

भगवान शिव ने मां पार्वती को मनाने की कोशिश की, लेकिन मां पार्वती ने इसे अपना अपमान मानकर प्रण लिया कि अगर ये सोने का महल उनका नहीं हो सकता तो किसी और का भी नहीं हो सकता. वहीं उसके बाद त्रेता युग में जब शिव ने हनुमान जी के रूप में रूद्रावतार लिया और रामायण में जब सभी पात्रों का चयन हो गया और तब भगवान शिव ने मां पार्वती को कहा कि, 'आप अपनी इच्छा पूरी करने के लिए हनुमान की पूंछ बन जाना. जिससे वो स्‍वयं लंका का दहन कर सकती हैं.' आप सभी को बता दें कि अंत में यही हुआ कि हनुमान जी ने सोने की लंका को अपनी पूंछ से जलाया और पूंछ के रूप में मां पार्वती थीं.

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