भोपाल जब कहलाता था हॉकी का ब्राजील लेकिन आज......

नई दिल्ली - एक समय था जब मध्य भारत के भोपाल शहर को हॉकी का ब्राजील कहा जाता था. भारत ने जब वर्ष 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता था. उसमे 5 खिलाड़ी भोपाल के ही क्लब से निकले थे.जिनमे साहबुद्दीन, मो. जफर, मिर्जा मसूद, अहमद शेरखान, ऐशल मोहम्मद खान ये वो खिलाड़ी थे जो भोपाल के ही क्लब से निकले थे. उस समय भोपाल हॉकी में फेमस था.

उस समय साल में कई दर्जनों हॉकी टूर्नामेंट होते थे. इतना ही नहीं भोपाल के हर स्कूल में खेल मैदान थे, हर स्कूल की हॉकी टीमें हुआ करतीं थी और इन टीमों में कॉम्पीटीशन भी गजब था. तब स्कूल लेवल के नेशनल हॉकी टूर्नामेंट हुआ करते थे और भोपाल की टीमें जीतकर आतीं थी. लेकिन आज भोपाल हॉकी में वो बात नहीं रही, आज न तो क्लब रहे और न ही स्कूल की टीमें.हमारे यहां हॉकी खिलाड़ी पैदा होते हैं, लेकिन उनकी डाइट कमजोर है.जिसकारण आज के खिलाड़ियों में न तो स्टेमिना है और न ही वो ताकत रही.

वर्ष 1968 में मैक्सिको ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली टीम के सदस्य 73 वर्षीय इनामुर रहमान ने अपनी पुरानी यादो को बताते हुए ये बात कही. वे बताते हैं कि तब भोपाल में हॉकी के बड़े-बड़े स्टेडियम नहीं होते थे, लेकिन हॉकी खेलने वाले जरूर होते थे. तब हॉकी भोपाल का एक कल्चर हुआ करता था. तब 90 मिनट का खेल होता था, अब इसे समेटकर 60 मिनट का कर दिया गया है. अब हॉकी मैदानों की जगह टर्फ पर खेली जाने लगी है.अब टूर्नामेंटों की संख्या भी कम हो गई है और खिलाड़ियों की भी.

महिला हॉकी खिलाड़ी भोपाल रियासत की कप्तान 78 वर्षीय जुबेरा खातून कहतीं हैं कि आज भोपाल में हॉकी है ही नहीं, भोपाल हॉकी की बात करें तो भोपाल में औरतों की हॉकी तो खत्म ही हो गई है, पहले शहर के स्कूलों की मिडिल क्लास से ही महिला टीम बनती थी.इनमें विक्टोरिया, गिन्नौरी और हमीदिया स्कूल की टीमें प्रमुख थीं. तब भोपाल में हॉकी के बड़े-बड़े स्टेडियम नहीं होते थे, लेकिन हॉकी खेलने वाले जरूर होते थे। तब हॉकी भोपाल का एक कल्चर हुआ करता था.

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