राजस्थान में 19000 किसानों की जमीनें कुर्क, नहीं चुका पाए कर्जा! 10 दिन में 'कर्जमाफी' का था वादा

जयपुर: राजस्थान में बैंकों का कर्ज नहीं चुका पाने के चलते बीते चार वर्षों 19 हजार से अधिक किसानों की जमीनें कुर्क कर ली गई हैं। ये विपक्षी पार्टी या किसी नेता का आरोप नहीं है, बल्कि राज्य की अशोक गहलोत सरकार ने विधानसभा में खुद यह बात स्वीकार की है। विधानसभा में भाजपा विधायक नरपत सिंह राजवी के सवाल के जवाब में सरकार ने कहा है कि राजस्व विभाग और राजस्व मंडल के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य के 19422 किसानों की जमीनें कुर्क कर ली गई हैं।

राजस्थान सरकार का यह जवाब इसलिए अधिक हैरान कर रहा है क्योंकि, राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई नेताओं ने वादा किया था कि, सरकार बनने पर मात्र 10 दिन के अंदर किसानों का कर्जा माफ़ कर दिया जाएगा। लेकिन, कर्जा माफ़ करना तो दूर, उल्टा सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने 19422 किसानों की आजीविका का एकमात्र साधन, उनकी जमीन तक छीन ली है।  

नरपत सिंह कहते हैं कि, सीएम अशोक गहलोत ने खुद विधानसभा में कहा था कि, 'किसानों की जमीनें कुर्क नहीं की जाएंगी।' लेकिन, 19 हज़ार किसानों की जमीनें छीनने पर नरपत सिंह कहते हैं कि, जब मुख्यमंत्री ने भरी विधानसभा में ही झूठ बोल दिया तो क्या शेष बचता है। 

क्या है कर्जमाफी का मुद्दा:-

दरअसल, राजस्थान में जो भी कर्जमाफी की गई है, उसमे सिर्फ सहकारिता बैंक शामिल हैं। लेकिन, किसान कर्ज केवल सहकारिता बैंकों से ही नहीं लेता, बल्कि  वो नेशनल, कॉमर्शियल, नेशनलाइज्ड रूरल बैंकों आदि से भी लेते हैं। कृषि कार्य के नाम पर जो ऋण लिया जाता है, अच्छी फसल होने पर किसान द्वारा वापस चुका दिया जाता है, मगर कई दफा विभिन्न कारणों से फसल अच्छी नहीं होने पर गिरवी रखी जमीन पर खतरा मंडराने लगता है। छोटे किसानों (5-10 बीघा भूमि वाले) को अधिक परेशानी होती है और उनके जीवनयापन करने का जरिया ही ख़त्म हो जाता है। जिससे किसान ख़ुदकुशी करने तक को मजबूर हो जाते हैं, एक रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में बीते 5 वर्षों में (2022 तक) 338 किसानों ने ख़ुदकुशी की है,  लेकिन सरकार द्वारा इनमे से केवल 13 को ही किसान माना गया है, बाकी को एग्रीकल्चर लेबर। यानी कृषि मजदूर, जो किसानी तो करते हैं, मगर उनके पास अपनी जमीन नहीं। हैरान करने वाली बात ये भी है कि, अक्सर किसानों के मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई का दावा करने वाले राकेश टिकैत जैसे किसान नेता ने इस तरफ कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी है।  

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