'शादी नहीं हुई है, तो नौकरी नहीं मिलेगी..', गहलोत सरकार को हाई कोर्ट ने लगाई फटकार, कहा- ये भेदभाव का नया उदाहरण

जयपुर: राजस्थान उच्च न्यायालय ने अशोक गहलोत सरकार पर कड़ा प्रहार करते हुए सरकारी परिपत्र की उस शर्त को खारिज कर दिया, जिसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त होने के लिए एक महिला का "विवाहित" होना अनिवार्य किया गया था। अदालत ने कहा कि किसी महिला को उसकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर सार्वजनिक रोजगार से वंचित करना महिला की गरिमा पर आघात है। न्यायमूर्ति दिनेश मेहता की अध्यक्षता वाली एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति एक महिला के समानता के अधिकार और समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करती है।

उन्होंने कहा कि, 'इस न्यायालय की राय में, एक महिला को उसके अविवाहित होने के आधार पर सार्वजनिक रोजगार से वंचित करना, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत एक महिला को दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने के अलावा, एक महिला की गरिमा पर आघात है।" हाई कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे आधार पर किसी महिला को सार्वजनिक रोजगार से वंचित करना महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के एक नए रूप का प्रदर्शन है। अदालत ने कहा कि, 'मौजूदा मामला एक विचित्र मामला है, जिसमें महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को एक नया पहलू दिया गया है। एक अविवाहित महिला के साथ एक विवाहित महिला के साथ भेदभाव किया जाता है। उक्त शर्त का समर्थन करने के लिए दिया गया प्रत्यक्ष कारण कि एक अविवाहित महिला शादी के बाद अपने वैवाहिक घर में चली जाएगी, तर्कसंगतता और विवेक की कसौटी पर खरा नहीं उतरती है।'

हाई कोर्ट ने अपने अंतिम फैसले में राजस्थान सरकार से कई सवाल पूछे हैं। कोर्ट ने पुछा कि, 'क्या होगा अगर, उम्मीदवार उसी गांव या आसपास के लड़के से शादी कर ले? क्या होगा यदि, एक विवाहित महिला आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त होने के बाद दूसरी जगह चली जाती है? यदि किसी महिला का पति किसी महिला के माता-पिता के घर में रहने का फैसला करता है तो क्या होगा? क्या होगा अगर, एक महिला विधवा या तलाकशुदा हो जाती है और एक नई जगह पर जाने का फैसला करती है? और क्या होगा अगर, कोई महिला शादी ही नहीं करना चाहती ?'

अदालत ने आगे कहा कि "राज्य न तो ऐसी किसी भी स्थिति को पहले से नज़रअंदाज़ कर सकता है और न ही किसी महिला को सिर्फ इसलिए नौकरी का दावा करने से रोक सकता है, क्योंकि उसने शादी के बंधन में नहीं बंधी है।'' अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि आंगनवाड़ी में काम करने में सक्षम होने के लिए एक महिला की वैवाहिक स्थिति शायद ही किसी उद्देश्य को पूरा करती है। कोर्ट ने कहा कि, 'यह आशंका कि शादी के बाद, एक महिला अपने वैवाहिक घर में चली जाएगी, सबसे पहले निराधार है और दूसरी बात, यह अपमानजनक स्थिति को उचित ठहराने या उसकी रक्षा करने का कारण नहीं हो सकता है। किसी महिला की शादी करने की शर्त पूरी तरह से अचेतन है और महिलाओं के आवेदन करने और सार्वजनिक रोजगार पाने के अधिकार का उल्लंघन है, जिसे मनमाना और असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।'

बता दें कि, मधु चरण ने 9 नवंबर 2016 को राजस्थान सरकार द्वारा जारी एक परिपत्र के आधार पर 28 जून 2019 को प्रकाशित एक विज्ञापन के जवाब में अपने गांव के आंगनवाड़ी केंद्र में नौकरी के लिए आवेदन किया था। नौकरी विज्ञप्ति के विवरण में उल्लेख किया गया है कि एक अविवाहित महिला नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर सकती है। याचिकाकर्ता कला में स्नातक डिग्री धारक और कंप्यूटर प्रवीणता प्रमाणपत्र (RAS-CIT) धारक है। फिर भी उसे सूचित किया गया कि वह इस पद के लिए अयोग्य है, क्योंकि उसकी अभी तक शादी नहीं हुई है। इसके बाद उन्होंने 2019 में उच्च न्यायालय का रुख किया और अधिकारियों को उनकी उम्मीदवारी पर विचार करने के निर्देश के साथ उन्हें अंतरिम राहत दी गई। अदालत ने सरकार को अविवाहित महिला उम्मीदवारों से प्रतिबद्धता का अनुरोध करने या नियम में संशोधन करने की अनुमति दी है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि यदि किसी आंगनवाड़ी केंद्र की महिला कार्यकर्ता शादी या अन्य कारणों से केंद्र छोड़ती है तो उसका केंद्र से संबंध समाप्त किया जा सके।

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