सेना के लिए नया खतरा बन रहा 'इनफॉर्मर ट्रैप'!

नई दिल्ली: जम्मू-कशमीर में आतंकवाद से मुकाबले में सेना के सामने इनफॉर्मर ट्रैप नई चुनौती और घातक खतरा साबित हो रहा है. भरोसेमंद खबरियों से मिली सूचनाएं गलत निकलने पर सेना की टुकड़ी गफलत का शिकार हो जाती है और घात लगाकर बैठे आतंकी इसका फायदा उठा लेते हैं.

बीते दस दिनों में बांदीपोरा और शोपियां में हुए दो आतंकी हमलों के दौरान ऐसे ही खबरिया फंदे में फंस कर सेना के छह जवान शहीद हो गए जबकि दोनों कार्रवाई में केवल एक आतंकी ही मारा जा सका.

बीते हफ्ते बांदीपोरा के हाजिन में सेना को अपने तीन जवान खोने पड़े थे. वहीं गुरुवार को शोपियां में सर्च से लौट रही सैनिक टुकड़ी को भी आतंकी हमले में नुकसान उठाना पड़ा. एक सर्च ऑपरेशन कर लौट रही राष्ट्रीय रायफल्स की सैनिक टुकड़ी को एक अन्य गांव में आतंकियों के छुपे होने की सूचना मिली, वहां पहुंचकर तलाशी लेने पर जब कुछ भी हाथ नहीं लगा तो यह टुकड़ी अपने ठिकाने पर लौटने को निकल पड़ी.

लेकिन रास्ते में घात लगाकर बैठे आतंकियों ने उनपर हमला बोल दिया और सैन्य टुकड़ी पर तीन ओर से अंधाधुंध फायरिंग में पार्टी को लीड कर रहे लेफ्टनेंट कर्नल मनीष झा समेत 6 लोग घायल हो गए. इनमें एक अधिकारी मेजर अमरदीप सिंह भी शामिल हैं जिन्हें सिर में गोली लगी है और उनकी हालत बेहद नाजुक है.

सूत्र बताते हैं कि बीते कुछ महीनों में सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने बुरहान वानी एनकाउंटर के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों से बिखरे अपने खबरिया तंत्र को चुस्त करने पर खासा जोर दिया था. इसमें काफी कामयाबी भी हासिल हुई.

रक्षा मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक हाल के महीनों में सेना और सुरक्षा बलों ने खुफिया खबरी नेटवर्क से हासिल सटीक सूचनाओं के चलते करीब 15-20 सफल ऑपरेशन किए गए जिनमें दो दर्जन से ज्यादा आतंकियों का सफाया किया गया. इन ऑपरेशन में ना केवल आतंकियों को मार गिराया गया बल्कि उनका नेटवर्क तोड़ने में भी कामयाबी हासिल हुई. इसके अलावा सर्च ऑपरेशन में आतंकियों के हथियार जखीरे और छुपने के ठिकाने भी नष्ट किए गए.

सूत्र बताते हैं कि सुरक्षा बलों की कार्रवाई से बौखलाए आतंकियों ने अब खबरी नेटवर्क को ही निशाना बनाकर अपने लिए इस्तेमाल शुरू कर दिया है. बांदीपुरा के हाजिन में एक मकान के अंदर आतंकियों के छुपे होने की खबर सेना को एक भरोसेमंद खबरी से मिली थी, इसके बाद की 46RR की टुकड़ी जब उस स्थान पर पहुंची तो आतंकी निशानदेही की जगह पर नहीं मिले. बल्कि एक अन्य स्थान से आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी.

जाहिर है पूरा प्लान सेना की टुकड़ी को घेरने का था, हालांकि मुठभेड़ में एक आतंकी अबू-मुसाएब मारा गया था. सूत्रों के मुताबिक सेना को सूचना देने वाले शख्स के पूरे परिवार को आतंकियों ने बंधक बना रखा था और बंदूक की नोक पर शर्त थी कि वो सेना की टुकड़ी को सुबह- सुबह बुलाएगा. हाजिन मुठभेड़ के दौरान स्थानीय लोगों की तरफ से पथराव भी हुआ था.

महत्वपूर्ण है कि बीते 2017 के अभी दो महीने भी पूरे नहीं हुए हैं और सेना ने अपने आधा दर्जन से ज्यादा सैनिकों को खो दिया है जिसमें मेजर सतीश दहिया की शहादत भी शामिल है. जबकि सीआरपीएफ कमांडेट चेतन चीता, मेजर अमरदीप सिंह, लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष झा समेत कई जांबाज अब भी घायल हैं. चिंता का सबब है कि शहीदों का आंकड़ा आतंकियों की मौत से ज्यादा है. ऐसे में सेना और सुरक्षाबलों के लिए जरूरी हो गया है कि वो अपनी रणनीति में बदलाव करें.

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