शांत व्यक्तित्व वाले थे गुरु हर राय जी, जानिए इनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें

आज यानी 16 दिसबंर को गुरू हरराय जी की जंयती है. गुरू हरराय जी एक महान आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष एवं एक योद्धा भी थे. उनका जन्म सन् 1630 ई० में कीरतपुर रोपड़ में हुआ था. गुरू हरगोविन्द साहिब जी ने मृत्यू से पहले, अपने पोते हरराय जी को 14 वर्ष की छोटी आयु में 3 मार्च 1644 को 'सप्तम्‌ नानक' के रूप में घोषित किया था. गुरू हरराय साहिब जी, बाबा गुरदित्ता जी एवं माता निहाल कौर जी के पुत्र थे. आज उनके जंयती के मौके पर उनकी जीवन से जुड़ी अहम जानकारी देने वाले है.

अगर बता करें गुरू हरराय साहिब जी के निजी जीवन की तो उनका शांत व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता था. गुरु हरराय साहिब जी ने अपने दादा गुरू हरगोविन्द साहिब जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया. उन्होंने सिख योद्धाओं में नवीन प्राण संचारित किए। वे एक आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे. अपने राष्ट्र केन्द्रित विचारों के कारण मुगल औरंगजेब को परेशानी हो रही थी. औरंगजेब का आरोप था कि गुरू हरराय साहिब जी ने दारा शिकोह (शाहजहां के सबसे बड़े पुत्र) की सहायता की है. दारा शिकोह संस्कृत भाषा के विद्वान थे. और भारतीय जीवन दर्शन उन्हें प्रभावित करने लगा था.

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि एक बार गुरू हरराय साहिब जी मालवा और दोआबा क्षेत्र से प्रवास करके लौट रहे थे, तो मोहम्मद यारबेग खान ने उनके काफिले पर अपने एक हजार सशस्त्र सैनिकों के साथ हमला बोल दिया. इस अचानक हुए आक्रमण का गुरू हरराय साहिब जी ने सिख योद्धाओं के साथ मिलकर बहुत ही दिलेरी एवं बहादुरी के साथ प्रत्योत्तर दिया. दुश्मन को जान व माल की भारी हानि हुई एवं वे युद्ध के मैदान से भाग निकले. आत्म सुरक्षा के लिए सशस्त्र आवश्यक थे, भले ही व्यक्तिगत जीवन में वे अहिंसा परमो धर्म के सिद्धान्त को अहम मानते हों. गुरू हरराय साहिब जी प्रायः सिख योद्धाओं को बहादुरी के पुरस्कारों से नवाजा करते थे.

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