कोरोना इलाज के लिए बैंक से लिया 35 लाख का लोन, पिता की मौत के बाद अब किश्तों में जा रहा वेतन

गांधीनगर: कोरोना महामारी में अस्पतालों के महंगे बिल ने मरीजों के परिवार वालों को इस कदर परेशान किया है कि पहले जहां वो अपनों के लिए अस्पताल के चक्कर लगाते थे. वहीं, अब अस्पताल के बिल को लेकर बैंक के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. गुजरात के गांधीनगर के निवासी राजन भलाणी की आंखें आज भी नम हो जाती है, जब वो अपने पिता को याद कर उनकी तस्वीर को देखते हैं.

दरअसल, राजन भलाणी के पिता जयेश भलाणी की मौत कोरोना संक्रमण के चलते हो गई थी. 40 दिन गांधीनगर के दो अलग-अलग अस्पताल में इलाज कराने के बाद वो कोरोना से जंग हार गए. उपचार के बाद अस्पताल ने जो बिल दिया उसे देख खुद राजन के पैरो तले ज़मीन खिसक गयी. राजन के पिता लगभग 10 दिनों तक वेंटिलेटर पर रहे और अस्पताल ने उन्हें वेंटिलेटर के लिए प्रतिदिन 50 हज़ार चार्ज किया. दवाई और इन्जेक्शन के चार्ज के नाम पर रोज़ 75 हज़ार के आसपास वसूला. अस्पताल का कुल बिल 18 लाख रुपये का हुआ, जबकि इंजेक्शन और दवाई बहार से लाने का बिल 15 लाख जोड़ा गया.

राजन भालाणी सबसे अधिक परेशान इस बात से थे कि अस्पताल हर दिन उन्हें बिल थमा रहा था. यहां तक कि रेमडेसिविर, टोसिलोजुम्बे, ब्लड प्लाजमा, ये सारी चीज़ें का प्रबंध उन्होंने पिता को बचाने के लिए किया. जिसके लिये उन्होंने बैंक से खुद के ओवरड्राफ्ट पर लगभग 35 लाख का लोन लिया, ताकी उपचार के लिए पैसे उधार देने वालों का कर्ज चुकाया जा सके. आज हालात ये है कि जो भी वेतन आता है, वो सीधा किश्तों में चला जाता है. राजन अब यही चाहते है कि सरकार कोई ऐसी नीति बनाए जिससे अस्पताल मरीज़ों से इतने पैसे ना वसूल करे.

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