हौसलों की उड़ान : पिता बेचते हैं ठेले पर सब्जी, बेटी बनी सिविल जज

'मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है'... ये पंक्तियां इंदौर की रहने वाली अंकिता नागर पर एकदम सटीक बैठती हैं। अंकिता नागर ने सिविल जज परीक्षा में एससी कोटे में 5वां स्थान हासिल किया है। अंकिता के माता-पिता सब्जी का ठेला लगाते हैं और दिन-रात मेहनत करके उन्होंने अंकिता को पढ़ाया-लिखाया है। बेटी की इस उपलब्धि से अंकिता के परिवार में खुशियां छा गई हैं। अंकिता के माता-पिता को उन पर नाज है और इस बात की खुशी भी है कि उनकी बरसों की मेहनत रंग लाई है। तीसरी कोशिश में मिली कामयाबी

सिविल जज परीक्षा में कामयाब होने वाली 25 साल की अंकिता को तीसरी कोशिश में यह सफलता हाथ लगी है। एलएलबी की पढ़ाई के दौरान ही वह सिविल जज परीक्षा की तैयारी में जुट गई थीं। उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन उनके माता-पिता ने कभी भी इस बात को उनकी पढ़ाई के आड़े नहीं आने दिया। अंकिता भी पढ़ाई से वक्त निकालकर माता-पिता की मदद के लिए कभी-कभी ठेले पर सब्जी बेचने पहुंच जाती हैं। बकौल अंकिता, मेरे परिवार में सभी सदस्य सब्जी बेचने का काम करते हैं। पापा सुबह पांच बजे मंडी चले जाते हैं। मम्मी सुबह आठ बजे सभी के लिए खाना बनाकर सब्जी के ठेले पर चली जाती हैं, फिर दोनों सब्जी बेचते हैं। बड़ा भाई आकाश रेत मंडी में मजदूरी करता है और छोटी बहन की शादी हो चुकी है। उनका कहना है कि वह इसी माहौल में पढ़कर आज यहां तक पहुंची हैं। वह रोजाना आठ से 10 घंटे पढ़ाई करती थीं। फूले नहीं समा रहे माता-पिता

अंकिता की इस कामयाबी से उनकी मां फूली नहीं समा रही हैं। अपनी खुशी का इजहार करते हुए उन्होंने भावुक होकर कहा कि वह तो पढ़-लिख नहीं पाईं, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाने का सपना जरूर देखा था, जोकि आज पूरा हो गया है। अंकिता के पिता अशोक कुमार नागर ने कहा कि उनकी बेटी एक मिसाल है। उसने जिंदगी में बहुत संघर्ष किया है, इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने कहा कि हम बेटा और बेटी को एक बराबर मानते हैं। हमने उसे पढ़ाया-लिखाया और इस लायक बनाया है। उन्होंने कहा कि हम आगे भी ठेला लगाएंगे। इसी से हमारे परिवार की रोजी-रोटी चलती है। दो प्रयासों में रहीं नाकाम

अंकिता ने बताया कि इससे पहले वह दो प्रयासों में नाकाम रहीं। तब सभी ने सोचा कि वह जज नहीं बन पाएंगी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और तीसरी कोशिश में बाजी मार ली। रिजल्ट आने पर उन्होंने सबसे पहले अपनी मां को गले लगाया और बधाई देते हुए कहा कि मां मैं जज बन गई हूं। यह उनकी जिंदगी का सबसे खुशी का पल था। सब्जी बेचने के अलावा, अंकिता को अपनी मां के साथ घर के कामों में हाथ भी बंटाना पड़ता था। वह बताती हैं, 'मैं कभी-कभी पापा के साथ ठेले पर सब्जी बेचती थी और घर के काम में मां का हाथ भी बंटाती थी। सारा काम पूरा करने के बाद मैं दिन में करीब आठ घंटे पढ़ाई करती थी। कई बार लाइट नहीं होने पर टॉर्च की रोशनी में पढ़ाई करती थी, क्योंकि समय कम था और सपने बड़े थे. अब मैं खुश हूं कि मुझे मेरी मेहनत का फल मिल गया है।' सपना पूरा करने के लिए नहीं की शादी

अंकिता अपने सपने को पूरा करने के लिए इस कदर बेताब थीं कि उन्होंने शादी तक नहीं की है। उसके बड़े भाई और छोटी बहन की शादी हो चुकी है। अंकिता कहती है कि मैं निष्पक्ष और निडर होकर आम जनता की मदद करूंगी और उन्हें न्याय दिलाऊंगी। अंकिता कई बार असफल हुईं, उनका आत्मविश्वास भी डगमगाया, लेकिन वह अपने लक्ष्य पर अडिग रहीं। वह ऐसे युवाओं के लिए भी एक मिसाल हैं जो कड़ी मेहनत के बावजूद नाकाम हो जाते हैं और कई बार गलत कदम उठा लेते हैं। 

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