फिराक गोरखपुरी की डायरी से . . .

1. आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़', जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए.

2. आँखों में जो बात हो गई है, इक शरह-ए-हयात हो गई है.

3. आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो, जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने 'फ़िराक़' को देखा है.

4. अब तो उन की याद भी आती नहीं, कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ.

5. अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही, यारों ने कितनी दूर बसाई हैं बस्तियाँ.

6. ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दिया, मेरी हर एक साँस मुनाजात हो गई.

7. असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का, तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ.

8. एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें, और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं.

9. एक रंगीनी-ए-ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर, एक शादाबी-ए-पिन्हाँ है बयाबानों में.

10. इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में, ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात.

11. इनायत की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है, कोई करता रहेगा चारा-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर कब तक.

12. इस दौर में ज़िंदगी बशर की, बीमार की रात हो गई है.

13. इश्क़ अब भी है वो महरम-ए-बे-गाना-नुमा, हुस्न यूँ लाख छुपे लाख नुमायाँ हो जाए.

14. इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा, हिज्र की भी आई नहीं नौबत.

15. इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो, इशरत-ए-वस्ल बने या ग़म-ए-हिज्राँ हो जाए.

16. इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए, इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात.

कौन सी चीज हैं जिसके फटने की आवाज नहीं होती

900 चूहे खाकर बिल्ली धीरे-धीरे चली

हज़रत मोहम्मद पैगंबर की वंशज है ब्रिटेन की रानी..

 

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