ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है पाड़ों की लड़ाई

नईदिल्ली। देशभर में दीपावली के बाद लोग दीपपर्व का उल्लास मनाने में लगे रहते हैं श्रद्धालुओं द्वारा जहां एक दूसरे से मिलकर दीपपर्व का उल्लास मनाया जाता है तो दूसरी ओर श्रद्धालु विविध आयोजनों से जुड़कर दीपावली की खुशियां मनाते हैं। इन आयोजनों में कुछ धार्मिक होते हैं तो कुछ मनोरंजक होते हैं ऐसे ही आयोजनों में एक आयोजन है पाड़े की लड़ाई का। हालांकि अब खुलेतौर पर इस तरह के आयोजन नहीं होते हैं।

दरअसल पशु क्रूरता को लेकर इस तरह के आयोजन का विरोध किया जाता है और पाड़ों की लड़ाई पर प्रशासन व पुलिस का सख्त पहरा रहता है मगर देशभर के ऐसे क्षेत्रों में जो कि पहुंच के दायरे में काफी दूरी पर हैं और जहां पर पाड़ों की लड़ाई को लेकर विरोधियों का अधिक ध्यान नहीं रहता वहां पर ऐसे आयोजन होते हैं। इस आयोजन के लिए सामान्यतौर पर खेतों को मैदान के तौर पर उपयोग में लाया जाता है।

ग्रामीण अपने - अपने पाड़ों को तैयार कर लेते हैं। पाड़ों को नहलाकर सजा दिया जाता है और पाड़े पर मालिक का और पाड़े का नाम लिख दिया जाता है इसके बाद पाड़ों को आमने - सामने कर लड़ने के लिए उकसाया जाता है। जिसके पाड़े की जीत होती है वह ईनाम प्राप्त करता है और उसका सम्मान किया जाता है।

ग्रामीणों में इस आयोजन को लेकर जबरदस्त उत्साह बना रहता है दीपावली पर इस बार भी इस तरह के आयोजन की तैयारियां कुछ क्षेत्रों में होने की जानकारी है लेकिन प्रशासनिक अमला ऐसे आयोजनों को लेकर सक्रिय है।

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