मानो या न मानो कर्म फल का यह नियम पूर्णतः सत्य है

व्यक्ति के कर्म ही उसके जीवन का आधार होते है. वह जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है. किन्तु व्यक्ति के कर्मो का फल उसे तत्काल नहीं मिलता इसमें कुछ समय का अंतर होता है. जिस प्रकार हम किसी बीज को बोते है और उसका फल पाने के लिए हमें कुछ समय इन्तजार करना पड़ता है. बीज बोने के साथ ही हम उसका फल प्राप्त नहीं कर सकते.

यदि व्यक्ति के जीवन में उसके कर्मों का फल उसे तुरंत मिलने लगता तो मानवी विवेक एवं चेतना की विशेषता कुंठित हो जाती. जैसे व्यक्ति के झूंठ बोलने पर उसकी जिह्वा तुरंत कट जाती, चोरी करते ही व्यक्ति का हाँथ अपंग हो जाता आदि. यदि ऐसा होता तो किसी के लिए भी दुष्कर्म करना संभव नहीं होता और केवल एक ही मार्ग शेष बचता. जो निर्जीव मार्ग होता.

शस्त्रों के अनुसार   शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति के कर्म कभी भी उसका पीछा नहीं छोड़ते. जैसे की मान लीजिए हमारा विवाद किसी अन्य व्यक्ति से हो जाता है और यह मामला कोर्ट तक पहुँच जाता है किन्तु उसी समय हमारी मृत्यु हो जाती है तो देखने में तो यही प्रतीत होगा की हम कोर्ट कचहेरी की परेशानियों से मुक्त हो गए. किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता क्योंकि उस व्यक्ति के मन में जिससे हमारा विवाद हुआ था हमारी याद निरंतर आती रहती है.

सभी के लिए भले ही हम इस संसार में न हों किन्तु उस व्यक्ति के मन में जो हमारे लिए द्वेष होता है वह उसके मन में हमेशा जीवित रहता है और जब भी वह अपना शरीर त्यागता है तो उसका अगला जन्म हमारे आस-पास ही होता है. और यदि दूर कहीं हुआ तो किसी भी प्रकार से उससे हमारा सम्बन्ध जुड़ ही जाता है. 

 

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