'भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार..' ! वाशिंगटन में एस जयशंकर के दो टूक जवाब ने ध्वस्त कर दिया राजनितिक नैरेटिव

नई दिल्ली: भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का मुद्दा गाहे-बगाहे उठता ही रहता है। पाकिस्तान भी दुनियाभर में घूम-घूमकर भारत पर यह आरोप लगाता रहता है। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी अक्सर अपने विदेश दौरों पर यह कहते रहे हैं कि, 'भारत में अल्पसंख्यकों पर जुल्म होता है' और यह कहकर वे विदेशी धरती से भारत सरकार पर हमला करते रहे हैं। ऐसे में अब दुनिया भी बार-बार कही जा रही इस बात पर भरोसा करने लगी है और मौका मिलते ही विदेश यात्रा पर पहुंचे भारत सरकार के किसी प्रतिनिधि पर अल्पसंख्यकों से जुड़ा सवाल दाग देती है। ऐसा ही सवाल वाशिंगटन डीसी में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के सामने भी रखा गया, लेकिन उन्होंने जिस तरह से इस सवाल का जवाब दिया, वैसा शायद ही आज तक किसी ने दिया होगा। 

 

विदेश मंत्री जयशंकर ने शुक्रवार (29 सितंबर) को धर्म के आधार पर भेदभाव की चिंताओं को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि देश में सब कुछ निष्पक्ष हो चुका है। शुक्रवार को वाशिंगटन डीसी में एक कार्यक्रम में बोलते हुए, विदेश मंत्री ने कहा कि, "चूंकि आपने भारत में अल्पसंख्यकों का मुद्दा उठाया है, किन्तु यह बताइए कि निष्पक्ष और सुशासन या समाज के संतुलन की कसौटी क्या है? इसकी कसौटी यही होगी कि आप सुविधाओं के मामले में, लाभ के मामले में, पहुंच के मामले में, अधिकारों के मामले में, किसी से भेदभाव करते हैं या नहीं। उन्होंने कहा कि, विश्व के प्रत्येक समाज में, किसी न किसी आधार पर, कुछ न कुछ भेदभाव होता ही है। लेकिन, अगर आप आज भारत को देखें, तो यह आज एक ऐसा समाज है, जहां जबरदस्त परिवर्तन हो रहा है। भारत में आज होने वाला सबसे बड़ा परिवर्तन एक ऐसे समाज में सामाजिक कल्याण प्रणाली का निर्माण है, जिसमें प्रति व्यक्ति आमदनी 3,000 अमेरिकी डॉलर से कम है। इससे पहले विश्व में किसी ने भी ऐसा नहीं किया है।' बता दें कि, भारत में अल्पसंख्यकों के लिए तमाम तरह की योजनाएं चलती हैं, उदाहरणस्वरूप बिहार की 'मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक उद्यमी योजना', जिसमे अल्पसंख्यकों को 10 लाख तक का लोन दिया जाता है, बड़ी बात ये है कि, लोन लेने वाले को इसमें से केवल 5 लाख ही चुकाना होता है और बाकी पैसा राज्य सरकार भरती है। इसी तरह केंद्र सरकार की आवास, स्वास्थय जैसी योजनाओं का  लाभ भी बिना भेदभाव के सभी वर्गों को मिलता है, अल्पसंख्यक छात्रों के लिए अलग से स्कॉलरशिप भी है।   

आपको चुनौती देता हूँ, मुझे अल्पसंख्यकों से भेदभाव दिखाओ:- जयशंकर 

इसी का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री ने आगे कहा कि अब, जब आप अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभों को देखते हैं, तो आप देखते हैं आवास के मामले में, आप स्वास्थ्य को देखते हैं, आप भोजन को देखते हैं, आप आर्थिक मदद को देखते हैं, आप शैक्षिक पहुंच को देखते हैं। उन्होंने कहा कि, "मैं आपको चुनौती देता हूं कि आप मुझे भारत में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव दिखाइए। असल में, हम जितना अधिक डिजिटल हो गए हैं, शासन उतना ही ज्यादा चेहराहीन हो गया है। असल में, यह पहले से कई अधिक निष्पक्ष हो गया है।' उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति बहुलवादी है और यहां की संस्कृति में विविधता है। यह सभी विषयों पर बातचीत होती है और उसमें एक संतुलन लाने का प्रयास किया जाता है और उसके आधार पर भी निष्कर्ष निकाला जाता है।

विदेश मंत्री बोले- हमारे यहां वोट बैंक की भी संस्कृति रही है

इसके बाद जयशंकर ने वाशिंगटन डीसी से दुनिया को वो सच्चाई बताई, जिसके कारण 'अल्पसंख्यकों पर अत्याचार' का नैरेटिव फैलाया जाता है। उन्होंने कहा कि, "जैसा कि मैंने कहा यह एक वैश्वीकृत दुनिया है। ऐसे लोग होंगे, आपके मन में इसके बारे में फ़िक्र होगी और उनमें से अधिकांश शिकायत सियासी है। मैं आपसे बहुत स्पष्ट तौर पर कहना चाहता हूं, क्योंकि हमारे यहां भी वोट बैंक की संस्कृति रही है और ऐसे वर्ग भी हैं, जिनका उनकी नजर में एक निश्चित विशेषाधिकार था।" विदेश मंत्री ने कहा कि भारत सबसे अच्छी प्रथाओं का पालन करता है। दरअसल, वोट बैंक को अपनी तरफ करने के लिए ही 'अल्पसंख्यकों पर अत्याचार' का नैरेटिव फैलाया जाता है, जो जितनी अधिक ताकत से यह मुद्दा उठता है, अल्पसंख्यकों को लगता है कि, वो उनका शुभचिंतक है और फिर अल्पसंख्यकों का वोट भी वहीं जाता है। भारत के बहुसंख्यक वर्ग के अधिकतर त्योहारों पर निकाली जाने वाली शोभायात्राओं और जुलुस पर अल्पसंख्यकों द्वारा हमला किए जाने की कई ख़बरें आए दिन आप देखते ही होंगे, उसके बाद भी दुनियाभर में यह नैरेटिव फैलाया जाता है कि, भारत में अल्पसंख्यक पीड़ित हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में सबसे कम आबादी जैन समुदाय की है, महज 0.4 फीसद, जो कारोबार में काफी आगे हैं, क्या उन्होंने कभी अपने ऊपर अत्याचार होने का दावा किया है या किसी नेता ने उनका मुद्दा उठाया है ? नहीं, क्योंकि वे अल्पसंख्यक तो हैं, लेकिन उनकी आबादी इतनी नहीं कि, वो वोट बैंक बन सकें। जैनियों से भी कम आबादी वाले पारसी और यहूदी, जो अपने देश को छोड़कर कई सालों पहले भारत में शरण लेने आए थे, उन्होंने भी आज तक उत्पीड़न की शिकायत नहीं की, उल्टा वे देश की उन्नति में योगदान दे रहे हैं। एक सिख अल्पसंख्यक हैं, सबसे अधिक भारतीय सेना में उनका योगदान माना जाता है, देशभर में सबसे अधिक लंगर यही अल्पसंख्यक समुदाय चलाता है। फिर 'अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का नैरेटिव' क्यों ? ये शिकायतें 90 फीसद एक ही समुदाय की तरफ से आती है, जो अल्पसंख्यकों में सबसे बड़े बहुसंख्यक हैं, लगभग 25 करोड़ आबादी है, वो वोट बैंक भी हैं, एकमुश्त वोट देते हैं, और उनका समर्थन प्राप्त करने के लिए ही राजनेता 'अल्पसंख्यकों पर अत्याचार' का नैरेटिव चलाते हैं। क्या दुनिया में कोई ऐसा देश है, जहाँ एक धर्म के बहुसंख्यक होने के बावजूद दूसरा धर्म पनप सके ? भारत में हिन्दू बहुसंख्यक होने के बावजूद, जब भगवान महावीर आए, तो एक तबका उनके पीछे चल पड़ा और जैन हो गया, कुछ वर्षों बाद भगवान बुद्ध आए, उनके साथ भी यही हुआ, कई लोग बौद्ध हो गए। फिर गुरु नानक आए, जिन्होंने सिख संप्रदाय की नींव रखी, भारत से निकले ये चारों धर्म आज आपसी प्रेम और सद्भाव से रहते हैं। अगर भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की संस्कृति होती, तो क्या ऐसा हो पाता ?  

बहरहाल, विदेश मंत्री जयशंकर ने डिजिटल भुगतान में देश की सफलता की सराहना करते हुए कहा कि, "अगर आप आज भारत में खरीदारी करने जा रहे हैं, तो आप अपना पर्स घर पर छोड़ सकते हैं, लेकिन आप अपना फोन नहीं छोड़ सकते, क्योंकि संभव है कि जिस व्यक्ति से आप कुछ खरीद रहे हैं, वह नकदी स्वीकार नहीं करेगा। वह चाहेगा कि आप अपने फोन से क्यूआर कोड स्कैन कर कैशलेस भुगतान करें। पिछले साल हमने 90 बिलियन कैशलेस वित्तीय भुगतान दर्ज किए। केवल संदर्भ के लिए, बता रहा हूं कि अमेरिका में लगभग 3 (बिलियन) और चीन में 17.6 (बिलियन) डिजिटल ट्रांसक्शन हुआ था। इस साल, हम शायद इससे (90 बिलियन) भी आगे निकल जाएंगे। मैंने जून के आंकड़े देखे, यह अकेले जून में 9 बिलियन ट्रांसक्शन थे। आज हर स्ट्रीट वेंडरों के पास एक QR कोड है।'

दुनिया को पुन: वैश्वीकरण की सख्त जरूरत :-

उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा कि दुनिया को किसी तरह के पुन: वैश्वीकरण की सख्त जरूरत है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भारत 'गैर पश्चिमी देश है लेकिन पश्चिम का विरोधी नहीं है।' जयशंकर वाशिंगटन डीसी में ‘थिंक टैंक’ हडसन इंस्टीट्यूट द्वारा ‘नयी प्रशांत व्यवस्था में भारत की भूमिका’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि, 'अगर आप इसे एक साथ रखें तो मैं आपको सुझाव दूंगा कि विश्व को किसी प्रकार के पुन: वैश्वीकरण की सख्त जरूरत है।'

उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण अपने आप में निर्विवाद है, क्योंकि इसने काफी गहरी जड़ें जमा ली हैं। उन्होंने कहा कि, 'इसके जबरदस्त लाभ हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है। मगर, वैश्वीकरण का यह विशेष मॉडल बीते 25 सालों में विकसित हुआ है। जाहिर है, इसमें काफी सारे जोखिम निहित हैं और आज उन जोखिमों को किस तरह दूर किया जाए और एक सुरक्षित दुनिया किस तरह बनाई जाए, यह चुनौती का हिस्सा है।' हिंद-प्रशांत पर जयशंकर ने कहा कि यह एक अवधारणा है जिसने आधार कायम कर लिया है। उन्होंने कहा कि हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र का एक प्रकार से अलगाव वास्तव में कुछ ऐसा है जो वास्तव में द्वितीय विश्व युद्ध का नतीजा था।

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