शास्त्र और शस्त्र, दोनों का ज्ञाता एक ब्राह्मण, परशुराम

हाथ में परशु, चेहरे पर तेज़, नेत्रों में दहकता क्रोध और ह्रदय में करुणा, यह चित्रण है, भगवान परशुराम का, एक ऐसे ब्राह्मण का, जो शास्त्रों में पारंगत था तो शास्त्र विद्या में भी कुशल था. जिन्होंने अपना पूरा जीवन अन्याय का नाश करने में लगा दिया. परशुराम भार्गव वंशी महर्षि जमदग्नि के पांच पुत्रों में सबसे छोटे थे, इनकी माता कामली रेणुका इक्ष्वाकु वंशी राजा की पुत्री थीं. इनका नाम ‘राम’ था, शिव से प्रसिद्ध परशु प्राप्त करने के बाद ये परशुराम के नाम से प्रसिद्ध हुए. परशुराम उस समय जन्मे थे जब भार्गवों और हैहयों में शत्रुता अपने चरम पर थी. एक बार परशुराम तपस्या करने के लिए जाते समय अपनी कामधेनु पिता जमदग्नि के आश्रम में छोड़ गए थे, अवसर पाकर हैहय राजा कार्तवीर्य ऋषि को मार कर और आश्रम को जला कर कामधेनु को ले गया.

परशुराम के वापस आने पर माता रेणुका ने इक्कीस बार छाती पीट कर अपना दु:ख प्रकट किया तो परशुराम ने क्षत्रियों का नाश करने की प्रतिज्ञा कर डाली. महाभारत तथा पुराणों में इनके 21 बार क्षत्रियों का संहार करने का बड़ा लोमहर्षक वर्णन मिलता है, इनके नरसंहार से बचे हुए केवल 8 क्षत्रियों के नाम उल्लिखित हैं.

युद्ध के बाद परशुराम ने हैहय क्षेत्र में नया राज्य स्थापित किया, अंत में सब कुछ ब्राह्मणों को दान देकर वे स्वयं तपस्या करने चले गए. ये विष्णु भगवान के प्रमुख दस अवतारों में कालक्रम से छठे अवतार हैं, इनका अविर्भाव वैशाख शुक्ल तृतीया को प्रदोष काल में हुआ था. भगवान परशुराम को सप्त चिरंजीवी में से एक मन जाता है, यानि धरती पर 7 अमर मनुष्यों में से एक. इनके अलावा अश्वथामा, कृपाचार्य, हनुमानजी, प्रह्लाद पुत्र महाबली, विभीषण और वेद व्यास भी चिरंजीवी हैं. 

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