चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा के बारे में कितना जानते हैं आप

नई दिल्ली: आज चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा की जानती है।  उनका जन्म आज ही के दिन सन 1927 को देवभूमि उत्तराखंड के 'मरोडा नामक जगह पर हुआ था। वह अपनी प्राथमिक शिक्षा के उपरांत लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए। जंहा सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के उपरांत ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी कर चुके है। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन को छोड़ दिया था।

अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही 'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' को स्थापित किया था। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक न केबल आंदालन किया बल्कि अनशन पर भी बैठ गए। चिपको आन्दोलन की वजह से वे  दुनियाभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

बहुगुणा के 'चिपको आन्दोलन' का घोषवाक्य है-

क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।

सुन्दरलाल बहुगुणा के मुताबिक पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति अहम् है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1970 में इनको पुरस्कृत भी किया। जिसके अतिरिक्त उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज 'पर्यावरण गाँधी' के नाम से भी पुकारा जाने लगा।

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