राहत इंदौरी के ये चुनिंदा शेर पढ़कर आप भी हो जाएंगे उनके फैन

जाने माने मशहूर शायर और कवि राहत इंदौरी ने अपनी शायरी से दुनियाभर में मोहब्बत का पैगाम दिया। आज ही दिन 11 अगस्त को 77 की उम्र में राहत इंदौरी को दिल का दौरा पड़ा था, जिसकी वजह से दिग्गज शायर ने अंतिम सांस लेकर दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। इंदौरी साहब की आज तीसरी पुण्यतिथि है। शायरी के साथ-साथ राहत इंदौरी ने हिंदी सिनेमा को कई जबरदस्त गीत दिए। आइए आज आपको बताते है उनके कहे कुछ शेर...

तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो

ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे

...फकीरी पे तरस आता है अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे

जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

बहुत हसीन है दुनिया आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं

मैं बच भी जाता तो... किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है

ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था

मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था

अंदर का ज़हर चूम लिया... अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए

कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे

मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए... रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैं

एक चिंगारी नज़र आई थी... नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं

एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के

इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं

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