RathYatra2018

जगन्नाथ रथयात्रा- युगों युगों से धर्म,आस्था और संस्कृति की धरती भारत में इन  विरासतों का अपना स्थान है और कई तरह की धार्मिक मान्यताओं में जगन्नाथ रथयात्रा का अपना महत्व है. पुराणों के अनुसार सौ यज्ञों के बराबर पुण्य की दायिनी श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा के दिन पुरी में जगन्नाथ मंदिर भक्तों से पटा रहता है. दस दिवसीय इस धर्म महोत्सव में देश और दुनिया के लाखों कृष्ण भक्त आते है. दस दिवसीय महोत्सव में श्रीगणेश अक्षय तृतीया को श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों का विहंगम दृश्य अभूतपूर्व सुख की अनुभूति करवाता है. इस यात्रा में भगवान अपने रथ पर नगर भ्रमण को निकलते है और प्रजा के सुख दुःख को देखते है. यही मान्यता पुराणों में भी उल्लेखित है.  कृष्ण जी का 16 पहियों वाला रथ लाल व पीले रंग से प्रमुखता से सजा होता है. विष्णु का वाहन गरुड़ और रथ का ध्वज जिसे  'त्रैलोक्यमोहिनी' कहा जाता है इस रथ की शोभा के प्रमुख आस्था केंद्र है . बलराम का रथ 'तलध्वज' लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से निर्मित है, जिसके रक्षक वासुदेव और सारथी मताली हैं. इस रथ के ध्वज को ''उनानी'' कहा गया है. इस रथ के घोड़ो के नाम त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा हैं. 'पद्मध्वज' सुभद्रा के रथ का नाम है. लाल, काले कपड़े और लकड़ी के 593 टुकड़ों से बने इस रथ के रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन कहे जाते है. इस रथ के रथध्वज 'पुराणों में नदंबिक' कहा गया है. हिन्दू  धर्म की आस्था का प्रतिक जगन्नाथ रथयात्रा के गौरवशाली इतिहास, पौराणिक महत्त्व, इससे जुड़ी कथाओं और इस साल इस धर्म आयोजन से जुड़ी हर खबर के लिए आप बने रहे न्यूज़ ट्रैक पर............ 

 
 

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