देवभाषा संस्कृत के बारे में ये नहीं जानते होंगे आप
देवभाषा संस्कृत के बारे में ये नहीं जानते होंगे आप
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नई दिल्ली: विश्व की प्राचीनतम भाषा और आज के योग की कई भाषाओ की जननी कही जाने वाली संस्कृत भाषा की भारत में उपेक्षा किसी से छुपी नहीं है. देव भाषा संस्कृत के प्रति जहा देश में अलगाव की स्थिति है जिसका कारण भी हम ही है. मगर अब जाकर कुछ संस्थानइस हेतु आगे आये है की देवभाषा संस्कृत को उसकी गरिमा फिर से दिलाई जा सके इस हेतु संस्कृत का वैश्विक स्तर पर प्रसार-प्रसार किया जा रहा है. इसी क्रम में पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र यूक्रेन के युवाओं का चौदह सदस्यीय जत्था इसी सिलसिले में वाराणसी के शिवाला में डेरा डाले हुए है. संस्कृत सीखने आए इन युवाओं में रियल स्टेट के कारोबारी, डॉक्टर तथा शिक्षक शामिल हैं. अनुमान है कि शहर में इस समय 70 अलग-अलग देशों के 190 छात्र संस्कृत सीख रहे हैं. कुछ साल पहले तक यह आंकड़ा 40 से 50 के दायरे में होता था, लेकिन फिलहाल अमेरिका के ही 35 छात्र यहां संस्कृत की दीक्षा ले रहे हैं. इसके अलावा म्यांमार, कोरिया, श्रीलंका तथा थाईलैंड के छात्र भी यहां हैं.

वाराणसी आने वाले ये विदेशी युवा सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स के बजाय तीन साल की डिग्री को ज्यादा तरजीह देते हैं. वे मानते हैं कि जो संस्कार और संस्कृति संस्कृत भाषा में है वह दुनिया की किसी अन्य भाषा में नहीं है.  शिवाला स्थित वाग्योग चेतना पीठ के प्रो. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ने एक ऐसी विधि तैयार की है जिसके जरिये बिना रटे सिर्फ 180 घंटे में कोई भी संस्कृत भाषा सीख सकता है. वह कहते हैं कि संस्कृत सीखने से दिमाग तेज हो जाता है और स्मरण शक्ति बढ़ती है. शायद इसी वजह से लंदन और आयरलैंड के कई स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य विषय बना दिया है. हमारे पौराणिक ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं.

आश्चर्य की बात यह है कि संस्कृत में सबसे ज्यादा शब्द हैं  संस्कृत शब्दकोश में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द हैं. यहां शब्दों का विपुल भंडार है. जैसे हाथी के लिए ही संस्कृत में सौ से ज्यादा शब्द हैं. खास बात यह है कि किसी और भाषा के मुकाबले संस्कृत में सबसे कम शब्दों में वाक्य पूरा हो जाता है. नासा से अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले प्रक्षेपण यान में अगर किसी अन्य भाषा का प्रयोग किया जाए तो अर्थ बदलने का खतरा रहता है, लेकिन संस्कृत के साथ ऐसा नहीं है, क्योंकि संस्कृत के वाक्य उल्टे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते. संस्कृत दुनिया की इकलौती ऐसी भाषा है जिसे बोलने में जीभ की सभी मांसपेशियों का इस्तेमाल होता है.

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