भगवान भोले की नगरी का यह इतिहास शायद ही आप जानते हों
भगवान भोले की नगरी का यह इतिहास शायद ही आप जानते हों
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भारत में ऐसे बहुत से धार्मिक स्थल है जहां भक्तो का आवागमन लगा ही रहता है उनमे से एक वाराणसी है यह शहर हज़ारो साल पूर्व स्थापित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के कारण बहुत प्रसिद्द है. काशी विश्वनाथ भगवान भोलेनाथ को ही कहा जाता है तथा वाराणसी में भगवान भोलेनाथ का वास है इस प्रसिद्द स्थल कि ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त यहाँ मनोकामना पूर्ती हेतु कोई भी मानता रखता है तो वह जरुर पूरी होती है वाराणसी कि ऐसी और भी रोचक बाते है जिसके बारे में बताया गया है.

वर्ष 1676 ई. में रीवा नरेश महाराजा भावसिंह तथा बीकानेर के राजकुमार सुजानसिंह काशी यात्रा पर आये थे. उन्होंने विश्वेश्वर के निकट ही शिवलिंगों को स्थापित किया. हिन्दू वास्तुकला का यह अनमोल धरोहर है जिसे इंदौर कि महारानी अहिल्याबाई के द्वारा वर्ष 1780 ई. में बनवाया था मंदिर का निर्माण वर्ष 1780 में भाद्र्पद्मॉस कृष्णापक्ष कि अष्टमी को पूर्ण हुआ था.

वर्तमान में मंदिर का स्वरुप और परिसर आज मूल रूप से वैसा ही होता है जैसा कि महारानी अहिल्याबाई द्वारा वर्ष 1780 ई. में बनवाया गया होगा, पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने वर्ष 1853 में 1000 किलोग्राम शुद्ध सोने से मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित किया गया जिसका स्वरुप आज भी है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लगभग 511 शिवालय प्रतिष्ठित थे इनमे से 12 स्वयं शिवलिंग, 46 देवताओं द्वारा, 47 ऋषियों द्वारा, 40 सत ग्रहों द्वारा, 294 अन्य श्रेष्ठ शिवभक्तो द्वारा स्थापित किये गए है. काशी या वाराणसी भगवान शिव कि राजधानी मानी जाती है. इसलिए यह अत्यंत महिमामयी भी है.

 

इसलिए भगवान शिव की तस्वीर हमेशा इस दिशा में लगायी जाती है

भगवान शिव का जलाभिषेक भूल से भी शंख से न करें वरना..

आखिर क्यों इस शिवलिंग की पूजा मुस्लिम भी करते है

इसलिए इस नदी का जल सदा उबलते रहता है

 

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