ये साली आशिकी मूवी रिव्यू : प्यार, धोखे और बदले की कहानी का नया चेप्टर
ये साली आशिकी मूवी रिव्यू : प्यार, धोखे और बदले की कहानी का नया चेप्टर
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जब बेइंतेहा मोहब्बत का बदला धोखा और बेवफाई से मिले, तो उस प्यार का अंजाम जानलेवा हो सकता है। प्यार में चोट खाकर बदला लेने के कॉन्सेप्ट पर बॉलिवुड में कई कहानियां बनी हैं, जो हिट भी रही हैं। निर्देशक चिराग रूपारेल भी 'ये साली आशिकी' में प्यार, धोखे और बदले की कहानी को थ्रिलिंग अंदाज में बुना है। वह चाहते तो डेब्यूटेंट जोड़ी के रूप में वर्धन पुरी और शिवालिका ओबेरॉय के लिए क्यूट लव स्टोरी बुन सकते थे, लेकिन उन्होंने डार्क, ब्रूटल और इंटेंस विषय चुना।

कहानी: साहिल मेहरा (वर्धन पुरी) और मीति (शिवालिका ओबेरॉय) शिमला के होटल मैनेजमेंट में साथ-साथ पढ़ते हैं। साहिल पहली नजर में ही मीति को दिल दे बैठता है, मीति भी उसके साथ प्यार की पींगें बढ़ाती हैं। अमीर घर का अनाथ साहिल मीति के प्यार में किसी भी हद तक जाने को तैयार है, लेकिन फिर उसके बाद कुछ ऐसे हादसे होते हैं कि साहिल और मीति की जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है। वे कौन-से हादसे थे, जिन्होंने इन लव बर्ड्स की मासूमियत छीन कर उन्हें एक ऐसे रास्ते पर जाने को मजबूर कर दिया, जहां से वापसी बहुत मुश्किल है, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

रिव्यू: निर्देशक चिराग रूपारेल ने कहानी की शुरुआत नॉर्मल अंदाज में की है, लेकिन  कुछ दृश्यों के बाद दर्शक को इस बात का अहसास हो जाता है कि कहानी के अंदर और भी कई परतें हैं। मध्यांतर तक आते-आते कहानी थ्रिलर का रूप ले चुकी होती है। फिल्म में निर्देशक ने कई टर्न और ट्विस्ट रखे हैं, जो आपको चौंकाते हैं, लेकिन कई जगह उन्होंने उसे अपनी सहूलियत के लिए उपयोग  किया है। कई सवाल ऐसे हैं, जिनके जवाब आखिर तक नहीं मिलते। यह एक यादगार थ्रिलर हो सकती थी बशर्ते निर्देशक ने इसे उस मजबूती से एग्जिक्यूट किया होता। फिल्म की प्रॉडक्शन वैल्यू भी कई दृश्यों में हल्की लगती है। कुछ मिसोजेनिस्ट संवाद भी हैं, जो आपको अखरते हैं। क्लाईमैक्स अति नाटकीय लगता है। फिल्म के संवाद, संगीत, सिनेमटोग्राफी, एडिटिंग एवरेज है। हितेश मोडक के संगीत में 'सनकी' गाना रोचक बन पड़ा है।

वर्धन की पीठ थपथपानी होगी कि अपनी पहली ही फिल्म में उन्होंने इतने लेयर्ड रोल को चुना। उन्होंने अपनी भूमिका को विश्वसनीयता प्रदान करने की हरचंद कोशिश की है, लेकिन पूरी फिल्म को कंधे पर उठाने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी होगी। नकारात्मक अंदाज में वह प्रभावी रहे हैं। कबूतरों को दाना खिलाने वाले दृश्य में वह अपने दादा अमरीश पुरी की याद दिला जाते हैं। शिवालिका ओबेरॉय शुरुआती दृश्यों में औसत लगती हैं, मगर कहानी के आगे बढ़ने के साथ वह संवरती जाती हैं। जॉनी लीवर के बेटे जेसी लीवर से कॉमिडी की उम्मीद थी, जो उनके हिस्से में नहीं आया। रुसलान मुमताज ठीक-ठाक लगे हैं।

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