पूजा, हवन और यज्ञ क्या हमारी भलाई के लिए हैं
पूजा, हवन और यज्ञ क्या हमारी भलाई के लिए हैं
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सूखा, बांझ औरतें और भूकंप। इस देश में ऐसे महात्मा और तथाकथित धार्मिक लोग हमेशा से काफी मात्रा में रहे हैं। ऐसे धार्मिक व्यक्तियों के बावजूद यह देश बहुत से सूखों का साक्षी रहा है। ऐसे लोगों द्वारा अपने यहां लगातार बेहद जटिल और खर्चीली पूजा, हवन और यज्ञ होते रहे हैं। इसके बावजूद हमारे यहां 1964 तक बेहद विकट अकाल पड़ते रहे हैं। हां, 1964 के बाद हमारे यहां कभी अकाल तो नहीं पड़ा, लेकिन सूखे जरूर पड़ते रहे हैं, जो खेती के लिए नुकसानदेय साबित हुए हैं। अगर 1964 के बाद हमारे यहां अकाल नहीं पड़ा तो इसकी वजह यह नहीं थी कि किसी ने यज्ञ या हवन या पूजा की, बल्कि हमारी खेती थोड़ी-बहुत व्यवस्थित हो गई। इतना ही नहीं, खेती के प्रति हमारा दृष्टिकोण भी पहले की अपेक्षा थोड़ा विवेकपूर्ण हुआ है। अपनी फसलों की देखभाल करने के लिए भगवान को बुलाने कि बजाए हम कुछ हद तक खुद करने करने लगे। यही वजह रही कि है कि पिछले चार साढ़े चार दशकों में हमारे यहां एक भी अकाल नहीं पड़ा। वर्ना उससे पहले तो यह उपमहाद्वीप हर दूसरे साल अकाल से उजड़ जाता था, जिसमें हर बार सैकड़ों हज़ारों जानें जाती थीं। अकाल जब भी आता, अपने साथ बहुतों को ले जाता।

हवन नहीं, अच्छी व्यवस्था से संभालें आपदाओं को

जहां तक बांझ औरतों का संबंध है तो मुझे लगता है कि यज्ञ काम आए हैं। निश्चित रूप से हमारी आबादी बहुत ज़्यादा है। ऐसा लगता है कि इस एक चीज ने काम किया है। मैं आशा करता हूँ कि वे लोग उन्हें एक बार फिर से बांझ बनाने के लिए कुछ यज्ञ कर सकते हैं। मेरे विचार से इस देश में हमें कुछ ऐसे यज्ञ और पूजाओं की ज़रूरत है, जिससे हर व्यक्ति को कुछ सालों तक बांझ या नपुंसक बनाया जा सके, ताकि वे बच्चे पैदा न कर सकें। उन लोगों ने बांझ औरतों को गर्भवती बनाने के लिए यज्ञ किया, लेकिन उन बच्चों का पेट भरने के लिए उन्होंने यज्ञ नहीं किया, जो सडक़ों पर पड़े रहते हैं। उसके लिए आपको दूसरे देशों की मदद की ज़रूरत पड़ती है। हालांकि वे पशुचारा भेजते हैं, फिर भी आप खुश हो जाते हैं। है ना! कई बार पश्चिमी देशों ने पशु-चारा भेजा है और आप खुश हो गए! हमारे बच्चों ने खाया और जि़ंदा रहे। कहीं-न-कहीं ये महात्मा कहे जाने वाले लोग भी आम लोगों की मूर्खता का समर्थन करते गए।

विज्ञान ने अकाल, बाढ़ व अन्य चीज़ों को काबू करने में एक भूमिका अदा की है। एक बार जब महामारियां दूर हो गईं, तो अपनी आबादी पर नियंत्रण करना आपका कर्तव्य था, लेकिन आप होश में नहीं आए और धार्मिक लोग आपको और बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करते गए। संभवत: इसकी एक वजह यह भी थी कि लोगों की जितनी ज्यादा तादाद धार्मिक लोगों के पास जाती है, इससे इन लोगों की बहुत प्रगति होती है। इस चीज को लेकर हमेशा से बड़ी लड़ाई रही है कि कौन कितने लोगों को अपने झुंड में परिवर्तित करने जा रहा है। अंतत: पूरी बात इसी पर टिकी है कि आपके इर्द-गिर्द ज्यादा-से-ज्यादा लोग हों और आपके आसपास जितने ज्यादा मूर्ख होंगे, आपके लिए उतना ही अच्छा होगा।

अब भूकंप पर आते हैं। गुजरात में हुए भूकंप के बाद मैं जहां कहीं भी गया, लोगों ने मुझसे एक ही प्रश्न पूछा, ‘इतनी बड़ी आपदा, हमें क्या करना चाहिए?क्या भगवान हमसे नाराज़ हैं? इस देश को भूकंप से बचाने के लिए क्या कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसे हम कर सकते हैं?’ मैं आपको समझाना चाहता हूं कि भूकंप कोई आपदा नहीं है। भूकंप मात्र एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, धरती मां अपने आप को बस थोड़ा-सा खींचती हैं। यह हर जगह होता है। चूंकि पृथ्वी का लगभग दो-तिहाई भाग पानी से ढंका हुआ है, इसीलिए अधिकांश भूकंप समुद्रतल में होते हैं, जिसका आपको पता नहीं चल पाता है। ज्वार-भाटा की लहरें उठती हैं, तो हाहाकार मचा देती हैं। कई बार समुद्र में भूकंप आने का कारण पृथ्वी की अंदरूनी सतहों की गति होती है। आपको इसकी जानकारी नहीं हो पाती, क्योंकि यह बहुत दूर होता है। पृथ्वी का दो-तिहाई भाग तो पानी के अंदर ही है। आपको केवल एक-तिहाई भाग का ही बंदोबस्त करना है। लेकिन फिर भी देखिए यह संभला नहीं है, खासकर भारत में। जऱा सोचिए इन चीज़ों को संभालने में हम कितने पीछे रह गए हैं। पूरे संसार में कई जगहों पर भूकंप हो रहे हैं, कुछ जगहों पर लगभग हर दिन होते हैं। उदाहरण के तौर पर कैलिफोर्निया में रोज ही भूकंप के झटके आते हैं। लेकिन वहां कोई नहीं मरता है। इसका कारण है कि उन परिस्थितियों से निपटने के लिए लोगों ने खुद को काफी व्यवस्थित कर लिया है।

जबकि भारत में एक भूकंप आता है और सैकड़ों-हजारों लोग मर जाते हैं। इसकी वजह यह है कि हमारी जनसंख्या बहुत ज़्यादा हो गई है और इस तरह की परिस्थितियों के लिए हमारी कोई तैयारी नहीं है। जब इस तरह की कोई घटना घटती है, तो लोग कीड़ों की तरह मरते हैं। मैं आपको एक उदाहरण देना चाहता हूं। लगभग दो से तीन साल पहले मैं अमेरिका में टेनेसी में एक प्रोग्राम के लिए गया था। उस शाम भाव-स्पंदन प्रोग्राम शुरू होने जा रहा था और हम लोग अपने रास्ते पर बढ़ रहे थे। उसी दिन दोपहर में नैशवील शहर में एक भारी तूफान आया। तूफान बहुत प्रचंड था, पूरे उद्वेग पर था। यह चक्रवात की तरह आया और सभी चीज़ें उडऩे लगीं -पेड़, कारें, सब कुछ। ऐसा लगता था जैसे तूफान तकरीबन सभी चीज़ों को आकाश में ले जा रहा था। उसने बिल्कुल बीच शहर में प्रहार किया। शहर के केंद्र का क्षेत्र भी प्रभावित था। शहर के अंदर मात्र दस से पंद्रह मिनटों में आठ सौ से ज्यादा विशाल वृक्ष जड़ से उखड़ गए। शहर के केंद्रीय क्षेत्र में लगभग हर इमारत की खिड़कियां और दरवाजे हवा में उड़ गए। हवा के कारण सैंकड़ों कारों का ढेर लग गया। हम लोग गाड़ी में जा रहे थे और लगभग आधे मील की दूरी पर तूफान आया था। हम उसे देख सकते थे। वह घरों को ध्वस्त किए जा रहा था। घर माचिस की तीली की तरह हवा में उड़ रहे थे। इसको देखकर मुझे लगा कि इस आपदा में जरूर सैकड़ों लोग मरे होंगे। सभी चौराहों पर जाम था। सभी चीजें सडक़ों पर बिखरी हुई थीं- पेड़, गाडिय़ां, टूटे हुए शीशे। पूरा प्रलय छाया हुआ था। अगले दिन समाचार में घोषित किया गया कि सात लोग लापता हैं। लेकिन दो दिन के भीतर ही उन सातों लोगों को ढूंढ लिया गया। इस आपदा में एक भी व्यक्ति नहीं मरा था।

अगर ऐसा तूफान हमारे शहरों में आ जाए, तो इससे हुई तबाही की सिर्फ  कल्पना ही की जा सकती है। अगर ऐसा कुछ हुआ तो उसमें कम-से-कम पचास हजार लोग मारे जाएंगे। इसका कारण यह नहीं है कि वे लोग अच्छे यज्ञ कर रहे हैं और आप ठीक तरह से यज्ञ नहीं कर रहे हैं। इसकी वजह सिर्फ  इतनी सी है कि वे चीज़ों को विवेकपूर्वक संभाल रहे हैं। ऐसी चीजों से निपटने के लिए जो किया जाना ज़रूरी है, वह वहां किया जा रहा है। जबकि यहां आप वह सब नहीं कर रहे हैं, जिसे करने की ज़रूरत है, उसे छोडक़र आप बाकी सब कुछ कर रहे हैं। आपको भूकंप की ज़रूरत नहीं है।

आज यह देश खुद ही एक आपदा बन गया है, क्योंकि आप अपने देश को वैसे नहीं चला रहे हैं, जैसे इसे चलाना चाहिए। आप अभी भी यही सोच रहे हैं कि भगवान देश को चलाएंगे। आप अभी भी इस प्रतीक्षा में हैं कि भगवान आपके लिए हर चीज़ का बंदोबस्त कर देगें। जो सारी अव्यवस्था आपने रची हुई है, उसके लिए आप इस प्रतीक्षा में हैं कि भगवान आकर इसे साफ कर देंगे। ऐसा नहीं होने जा रहा है। ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण करने का अनुपम कार्य किया है। आप शिकायत नहीं कर सकते हैं। कितना संपूर्ण और कितना समृद्ध है यह! आप इससे बेहतर सृष्टि की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं। कितनी अनूठी चीज का सृजन किया गया है। अब समय आ गया है कि आप अपने जीवन को, अपने घर को, अपनी सामाजिक और राष्ट्रीय स्थितियों को अपने हाथ में ले लें और वही करें, जो किया जाना चाहिए। जब तक हम इस देश को ईश्वर के हाथ से अपने हाथ में नहीं ले लेते, ये सारी घटनाएं होती रहेंगी।
हवन विज्ञान से व्यापार बनता चला गया

कोई व्यक्ति आंध्र प्रदेश में एक यज्ञ करता है, ताकि भूकंप न आए। मैं आपको बता रहा हूं कि अगले पांच सालों में इसकी अधिक संभावना है कि आंध्र प्रदेश में कोई भूकंप नहीं आएगा। अब तो इसी आदमी को यह श्रेय मिलेगा, ‘भूकंप नहीं हुआ, क्योंकि मैंने यज्ञ किया था।’ तमिलनाडु में एक दूसरे महात्मा ने यह भविष्यवाणी की है कि सौ साल के बाद तमिलनाडु में एक भयानक बाढ़ आने वाली है। सौ सालों में तमिलनाडु में एक बाढ़ आने वाली है और यह आदमी अभी इसकी घोषणा कर रहा है। सभी लोग उसके आगे-पीछे घूम रहे हैं, क्योंकि उसने उसके बारे में एक बड़ी भविष्यवाणी की है, जो सौ साल बाद होने वाला है। सौ साल के बाद जो होने वाला है, उसकी भविष्यवाणी कोई भी कर सकता है। उसकी भविष्यवाणी करो, जो दस मिनट बाद होने वाला है, तब हम देखें क्या होता है। दरअसल, सौ साल बाद होने वाली किसी घटना की भविष्यवाणी करना आसान है, क्योंकि उसे देखने के लिए तब न तो आप रहेंगे और नही वो रहेगा। और फिर सौ सालों में कहीं-न-कहीं बाढ़ तो आ ही सकती है।

ऐसा नहीं है कि इन हवन, यज्ञ और पूजाओं का कोई आधार नहीं था। इन सारी चीजों का कुछ न कुछ वैज्ञानिक आधार था। लोगों के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाने के एक तरीके के रूप में इन शास्त्रीय विधानों का प्रयोग होता था, जिनका बाकायदा वैज्ञानिक आधार था। जब एक आंतरिक स्थिति की रचना करने के लिए लोगों के पास अपने खुद के तरीके नहीं थे, तब जो लोग बाहर एक अनुकूल वातावरण बनाना जानते थे, उन्होंने वैदिक काल के दौरान कुछ खास हवन और यज्ञों के साथ ऐसा किया था। धीरे-धीरे ब्राह्मण-संस्कृति इसे समझ की सारी सीमाओं के परे ले गई और यह एक बड़ा व्यापार बन गया, क्योंकि केवल ब्राह्मण ही इन सारे शब्दों का उच्चारण कर सकते थे। और कोई व्यक्ति नहीं कर सकता था। आपने भी सुना होगा कि राम के समय में एक शूद्र का सिर्फ इसलिए वध कर दिया गया, क्योंकि वह यज्ञ देखने के लिए यज्ञस्थल तक जा पहुंचा था। वहां जो कुछ कहा और किया जा रहा था, उसे सुनने के अपराध में उस आदमी की हत्या कर दी गई थी। ऐसा इसलिए होता था, क्योंकि कुछ लोग इस व्यापार में अपना ही एकाधिकार बनाए रखना चाहते थे। इस लालच में उन्होंने इसे इतना पेचीदा और विस्तृत बना दिया था, कि लोग सचमुच सोचने लगे कि वास्तव में इसमें कुछ है।

तथाकथित चमत्कारों पर नहीं, वास्तविकता पर ध्यान दें

कुछ साल पहले किसी ने मुझे कोल्हापुर के एक डॉक्टर का किस्सा सुनाया था। मुझे बताया गया कि उस डॉक्टर की क्लिनिक अंदर से एक विशाल अस्पताल की तरह लगती है। जहां एक प्रयोगशाला में तरह-तरह के जटिल ट्यूब और फ्लास्क जैसे बर्तन रहते हैं। उस प्रयोगशाला में हर वक्त बहुत से काम होते रहते हैं। हर वक्त लाल, नीले, हरे द्रव यहां-वहां जाते दिखाई देंगे। किस्सा सुनाने वाले ने कहा कि अगर आप एक रोगी के रूप में उसके पास जाएंगे तो उससे मिलने से पहले, आपको बहुत सारे रास्तों से होकर गुजऱना होगा, जहां आपको तमाम तरह के प्रयोग होते दिखाई देंगे। ऐसे में जाहिर है, जब तक आप सलाह कक्ष तक पहुँचते हैं, तब तक आप बहुत प्रभावित हो चुके होते हैं। आपको लगता है कि यहां वाकई बहुत बड़ा शोध कार्य चल रहा है। जब आप डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, तो वह आपको लिटा देता है और फिर वहां तरह-तरह के बहु-रंगी प्रकाश दिखने लगेंगे, आवाजें होंगी, बहुत कुछ घटित होगा। सिर्फ रोशनी वाले बल्बों द्वारा आप की तमाम तरह की जांचें होंगी। जब यह सब हो जाएगा, तो वह डॉक्टर आपको लगभग तीन मिलीमीटर व्यास वाली एक पतली सी बोतल देगा, जिसके अंदर तीन या चार मिलीलीटर द्रवहोगा, लाल रंग का द्रव या कुछ चमकीले रंग का द्रव। आपको एक दिन में इस द्रव की दो बूदें लेनी होंगी और हर तीसरे दिन आपको फिर से द्रव भरवाना होगा।

कई लोग इस आदमी को एक चमत्कारी चिकित्सक मानने लगे। उन्होंने अपनी सभी बीमारियों से छुटकारा पा लिया। एक दिन कुछ हुआ और वह पकड़ा गया। लोगों को पता लगा कि वह दवा कुछ और नहीं सिर्फ  रंगीन पानी था, लेकिन वह बहुत अच्छी तरह काम कर रहा था! सैकड़ों लोग कह रहे थे कि यह दवा काम करती थी। दरअसल, अधिकांश लोग वाकई बीमार न होकर बीमार होने का बहाना करते हैं।

इसकी वजह है कि उन्हें बीमार होना पसंद हैं। सचमुच ऐसा होता है, आप विश्वास नहीं करेंगे, लेकिन सच्चाई यही है। बहुत से लोग इसलिए बीमार होना चाहते हैं क्योंकि इस तरीके से वे आसानी से दूसरों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। उनके पास लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कोई और साधन नहीं होता। यह एक गहरी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। यह कुछ ऐसा कार्य है, जिसे करने के लिए आपको प्रशिक्षित किया गया है, जिसे करने के लिए आपको हमेशा प्रोत्साहित किया गया है। अकसर देखा जाता है कि जिन घरों में कई बच्चे होते हैं और अगर वे खुश रहते हैं, तो उन पर कोई ध्यान नहीं देता। लेकिन जैसे ही वे बीमार पड़ते हैं, तो पूरा परिवार उनके इर्द-गिर्द जमा हो जाता है, बहुत सी अच्छी बातें कही जाती हैं। उनका बहुत ज़्यादा ख्याल रखा जाता है। ऐसे में कहीं-न-कहीं अचेतन में बच्चा यह सीखता है कि बीमारी एक बहुत बड़ा निवेश है। अगर आप बीमार पड़ते हैं, तो हर आदमी आपसे बड़ा अच्छा बर्ताव करता है।

अफसोस कि जब कोई बच्चा या इंसान खुश या प्रसन्नचित्त रहता है तो अकसर उस पर कोई ध्यान नहीं देता। लोग सोचते हैं कि वह एक मुसीबत है। वास्तव में, अगर वह बहुत ज़्यादा खुश और उल्लासित है तो उसे शांत किया जाता है, लेकिन बीमार लोगों पर हमेशा अधिक ध्यान दिया जाता है। यह बहुत अस्वस्थ और अनुचित परंपरा है, जो कई मायनों में इस पृथ्वी पर बीमारी का एक बड़ा स्रोत भी है। इसके तहत बचपन से ही लोगों को बीमार होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। अगर आप बीमार होते हैं तो आपकी बढिय़ा तीमारदारी होगी। जबकि असल में आपको बीमार लोगों को हमेशा नजरअंदाज करना चाहिए। हां, बीमारी का जश्न मत मनाओ। अगर उन्हें दवा की ज़रूरत है, अगर उनका खयाल रखने की ज़रूरत है, तो वह सब किया जाना चाहिए। लेकिन अनावश्यक रूप से बीमारों की सेवा मत कीजिए। अगर किसी व्यक्ति को औषधि चाहिए, देखभाल चाहिए, अच्छा भोजन चाहिए, तो आप उतनी परवाह कीजिए, यह ठीक है। लेकिन जरूरत से ज्यादा ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं है। अगर आप बीमार हैं तो एक जगह पर लेट जाइए। करने के लिए और क्या है? आप किसी और काम के योग्य नहीं हैं। बीमारों का ज्यादा खयाल रखना गलत है खासकर बच्चों का, क्योंकि यह उनकी मानसिकता में बैठ जाता है और वे अनजाने में ही आपका ध्यान पाने की तलाश में रहते हैं। जब कभी उन्हें ध्यान की सख्त ज़रूरत होती है, वे सच में बीमार पड़ जाते हैं। तब वे बहाना नहीं कर रहे होते, वे वास्तव में बीमार पड़ जाते हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि वे ध्यान पाने के लिए बहाना करते हैं। वे वास्तव में बीमार हो जाते हैं। भले ही वे चिकित्सकीय दृष्टि से बीमार होते हैं, लेकिन इसका कारण मनोवैज्ञानिक होता है।

आबादी न्यौता दे रही है आपदाओं को

तो, हमारे देश को तमाम चीजों से मुक्त होने के लिए पूजाओं और हवनों वगैरह से सहायता नहीं मिली है। है कि नहीं? अब वक्त आ गया है, कि आप वह कीजिए, जिसे करने की ज़रूरत है। अब भूकंप रोकने की दिशा में मेरी क्या भूमिका है? मैं भूकंप को रोकना नहीं चाहता हूं। इसकी बजाए, मैं चाहता हूँ कि लोग इतने समझदार बनें कि उन्हें अच्छी तरह पता हो कि अगर भूकंप आ भी जाए, तो अपने जीवन को कैसे व्यवस्थित किया जाए। एक बात और, बेशक मैं यह नहीं चाहता कि बांझ औरतें बच्चे पैदा करने लगें। यह पृथ्वी इसके बिना ही अच्छी है। बहुत सारे मूर्ख लोग, जो ढंग से जीवन जीने का सलीका नहीं जानते, वे लगातार बच्चे पैदा किए जा रहे हैं। अलौकिकता की बात तो भूल ही जाइए; वे तो यह भी नहीं जानते कि अपनी भौतिक काया को कैसे संभालना है! वे नहीं जानते कि यह मानव-रूप क्या है। वे नहीं जानते कि अपनी भावनाओं को कैसे संभालना है, वे नहीं जानते कि कैसे अपने मन को संतुलित किया जाए। फिर ये लोग बच्चे क्यों पैदा किए जा रहे हैं?

किसी प्राणी को जन्म देना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। यह काम निर्दयतापूर्वक नहीं किया जाना चाहिए। अगर आप एक बच्चे को जन्म देना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि पहले आप खुद को अच्छी तरह से संभालना सीखें। अगर आप अपने आप को संभालना जानते हैं, तभी आपको एक दूसरे जीव को इस धरती पर लाने का अधिकार है। अगर आपको खुद को ही शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से संभालना नहीं आता तो फिर आप बच्चे क्यों पैदा किए जा रहे हैं और इस संसार में इतनी समस्याएं और विनाश की रचना क्यों किए जा रहे हैं?

लोगों द्वारा बच्चे पैदा करने की एक वजह यह भी है कि वे सोचते हैं, इससे उनके जीवन में पूर्णता आएगी। अगर आप एक दर्जन भी बच्चे पैदा कर लेंगे, तब भी आप परिपूर्ण नहीं होंगे। आपने उन लोगों को देखा है, जिन्होंने एक दर्जन बच्चे पैदा किए हैं? वे लोग भी परिपूर्ण नहीं हुए हैं। उनके चेहरों पर न तो आपको तृप्ति दिखाई देगी और ना ही शंाति, बल्कि वे अपने बच्चों से परेशान ही दिखाई देंगें। मुझे तो अधिकतर मामलों में यही दिखाई देता है। उनमें से अधिकांश लोग कष्ट में हैं। वे इसे व्यवस्थित करने में सक्षम नहीं हैं। अपने कामों के लिए हर वक्त भगवान से गुहार लगाने की बजाय बेहतर है कि हम अपने जीवन और अपनी परिस्थितियों को अपने हाथों में ले लें।

बाहरी शक्तियां को नहीं, भीतरी तत्व को जगाना होगा

अब आप यह जानना चाहते हैं कि मानव-कल्याण में मेरा क्या योगदान है? मेरा योगदान आपको यह समझाना है कि इस पृथ्वी पर या इसके परे कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो आपके लिए कुछ कर सके, जब तक कि आप अपने अंदर एक खास तरह से जीने नहीं लगते। जब तक आप ग्रहणशील नहीं बनते, विकसित नहीं होते और अपने अंदर विवेक पैदा नहीं करते, तब तक कोई महात्मा, कोई भगवान, कोई अलौकिक प्राणी आपके लिए कुछ नहीं कर सकता। आप उनकी आराधना कर सकते हैं, उनकी पूजा कर सकते हैं, उनकी स्तुति में भजन गा सकते हैं, लेकिन आप उसी कष्ट में पड़े रहेंगे। आपके लिए कोई मुक्ति नहीं होगी।

जब कृष्ण, राम, गौतम, ईसा या दूसरे कई संत-महात्मा इस संसार में आए, जो वाकई अद्भुत और शक्तिशाली प्राणी थे, तो भी उनके इर्द-गिर्द मौजूद अधिकांश लोगों ने साधारण व कष्टकारी जीवन ही जिया था। उनमें से चंद लोग ही अपनी सीमाओं से ऊपर उठ पाए, जबकि बाकी सब अपनी पीड़ाओं में ही जीते रहे। इसलिए अगर आपके हवन व यज्ञ भगवान को नीचे उतार भी लाएं तो भी वास्तव में आपको इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। आप तब भी मूर्ख ही बने रहेंगे। जब तक आप खुद अपने संबंध में कुछ नहीं करते, तब तक परिस्थितियां नहीं बदलेंगी।

मैं लोगों को यह सब बताना चाहता हूँ। मैं उनके तन, मन और ऊर्जा को इस तरह से उकसाना चाहता हूँ कि वे थोड़ा और जीवित हो जाए, क्योंकि बिना जीवंतता के लोग अपने जीवन के लिए जूझ नहीं पाएंगे। बिना जीवंतता के वे यूं ही पड़े रहेंगे और अपने कामों को कराने के लिए भगवान के भरोसे बैठे रहेंगे। उन्हें थोड़ा और जीवंत बनाने, उन्हें थोड़ा और विवेकपूर्ण बनाने और उनमें अपनी सीमाओं से परे जाने की संभावना को खोलने के लिए ही तो मैं यहां आया हूँ। पहली चीज यह है कि खुद संभलिए और विवेक से काम लीजिए। इस शरीर, इस मन, इन भावनाओं को संभालने के लिए, जो चीज़ें इस क्षण आपके अंदर हैं, उन्हें विवेकपूर्वक व्यवस्थित कीजिए।

अगर आप इन चीज़ों को विवेकपूर्वक व्यवस्थित करना नहीं जानते तो इनके पार जाने की बात भूल जाइए। उस स्थिति में कुछ नही होने वाला। यह मात्र एक भ्रम है। कोई भी ईश्वर आपके सामने आ जाए, उससे कुछ नही होने वाला। ईश्वर का आना तब तक कोई मायने नहीं रखता, जब तक आपको यही नहीं पता कि अपने अंदर कैसे जीना है? जब तक आप यह नहीं जानते कि इसे कैसे हासिल किया जाए तो आप वैसे ही बने रहेंगे।

दरअसल, भगवान के कहीं और से आने की ज़रूरत ही नहीं है, क्योंकि जिसे आप ईश्वर कहते हैं वह तो हमेशा से यहीं है- आपके भीतर, लेकिन मृत पड़ा हुआ है। उसे जीवित करने के लिए पहले आपको पूर्ण रूप से जीवित होना होगा। अगर आप अपने अंदर की दैवीयता को जीवंत करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको एक मानव के रूप में पूरी तरह से जीवित होना होगा।

मेरा काम तो बस आपको जीवंत बनाना है। अगर आप वाकई जीवित हो जाते हैं, तो आपके अंदर का दिव्य या दैवीयता भी जीवित हो जाएगी। तब भूकंप आपके लिए कोई मायने नहीं रखेंगे; आपको पता होगा कि उन्हें कैसे संभालना है। ऐसा नहीं है कि तब ये चीज़ें नहीं होंगी। ये होंगी, इन्हें होना चाहिए। बात बस इतनी है कि आपको अपने व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन को, अपने राष्ट्रीय मुद्दों और विश्व के मुद्दों को और ज्यादा विवेकपूर्ण ढंग से व्यवस्थित करना सीखना चाहिए। यह तभी संभव होगा, जब आप अपने मन और शरीर को व्यवस्थित करने में सक्षम होंगे। वर्ना आप कभी जान ही नहीं पाएंगे कि कैसे इस संसार में विवेकपूर्वक व्यवस्था लाई जाए। इसलिए आपको जीवित करना और आपमें यह विवेक लाना ही मेरा यज्ञ है।

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