भारत का एक ऐसा अनोखा फूल जो 12 साल में खिलता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग
भारत का एक ऐसा अनोखा फूल जो 12 साल में खिलता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग
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कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के हर कोने को कुदरत ने नेमतों से नवाजा है.शहरों, गांवों, पहाड़ों और गुफाओं में कुदरत के ऐसे कई राज छिपे हुए हैं, जिनसे पर्दा उठता है तो इंसान हैरत में पड़ जाता है.आज हम आपको एक ऐसे फूल के बारें में बताने जा रहे हैं जो बारह साल में एक बार खिलता है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग खिंचे चले आते हैं. ईश्वर के शहर के नाम से मशहूर केरल, हरे-भरे पहाड़ों, समुद्री किनारों और कुदरती नजारों के लिए मशहूर है.इस राज्य की सबसे खूबसूरत जगह है, मुन्नार जो समुद्र की सतह से 1600 मीटर ऊपर है.ये जगह कॉफी और मसालों की खेती के लिए ज्यादा  मशहूर है.यहां की हरियाली और सुकून सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है.यही वो जगह है जहां हिंदुस्तान का सबसे बड़ा राज छिपा है जिसका नाम है नीलकुरिंजी.नीलकुरिंजी दुनिया के दुर्लभ फूलों में शुमार होता है.ये 12 साल में एक बार खिलता है.

साल 2018 में यह फूल खिला था.केरल के लोग इसे कुरिंजी कहते हैं.ये स्ट्रोबिलेंथस की एक किस्म है.इसकी करीब 350 फूलों वाली प्रजातियां भारत में ही हैं.स्ट्रोबिलेंथस की अलग-अलग प्रजातियों के फूलों के खिलने का समय भी मुख्तलिफ है.कुछ चार साल में खिलते हैं, तो कुछ आठ, दस, बारह या सोलह साल में खिलते हैं.लेकिन ये फूल कब खिलकर खत्म हो जाते हैं किसी को पता भी नहीं चलता.वजह है कि ये फूल ज्यादातर सड़क किनारे ही खिलते हैं और सड़कें चौड़ी करने के मकसद से इन फूलों के उगने की जरखेज जमीन खत्म हो गई है.इसके अलावा चाय और मसालों की खेती के लिए बड़े पैमाने पर जमीन ले ली गई है.इस वजह से भी इन फूलों के लिए जमीन नहीं बची.अब इस अजूबे फूल के लिए केरल में जगह संरक्षित की जाती है, क्योंकि इसके खिलने का इंतजार सभी को रहता है।

यूं तो केरल के पहाड़ गहरे हरे और नीले हैं लेकिन इस फूल के खिलने के बाद तमाम वादियां बैंगनी सी नजर आने लगती है.जो की बेहद ही ख़ूबसूरत अनुभव होता है. ये फूल अगस्त के महीने में खिलना शुरू होता है और अक्तूबर तक इसका मौसम रहता है.इस फूल के लिए कुरिंजीमाला नाम का संरक्षित क्षेत्र यानी सैंक्चुअरी भी है जोकि मुन्नार से 45 किलोमीटर दूर है.पर्यावरण कार्यकर्ता और सेव कुरिंजी कैंपेन काउंसिल के सदस्य आर. मोहन के मुताबिक हर किसी की ख्वाहिश रहती है कि वो इस फूल को खिलता हुआ देख ले.तोडस, मथुवंस और मनडियास जाति के आदिवासी इस फूल की पूजा करते हैं.2006 में केरल के जंगलों का 32 वर्ग किलोमीटर इलाका इस फूल के संरक्षण के लिए सुरक्षित रखा गया था.इसे कुरिंजीमाला सैंक्चुअरी का नाम दिया गया.ये सैंक्चुअरी कुरिंजी कैंपेन काउंसिल की कोशिशों का नतीजा है.वैली ऑफ फ्लॉवर के बाद ये भारत की दूसरी फ्लॉवर सैंक्चुअरी है.यहां नीलकुरिंजी की तमाम प्रजातियां संरक्षित की जाती हैं.

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