आप सभी इस बात से तो वाकिफ ही होंगे कि हिंदू धर्म में सबसे पवित्र ग्रंथों में से श्रीमद्भगवद्गीता को एक माना गया है. जी दरअसल श्रीमद्भगवद्गीता को भारतीय संस्कृति की आधारशिला कहते हैं. कहा जाता है हिंदू धर्मग्रंन्थों में और शास्त्रों में श्रीमद्भगवद्गीता का सबसे पहला स्थान होता है और श्रीमद्भगवद्गीता की लोकप्रियता इस समय हर दिन बढ़ती हुई दिखाई दे रही है. वैसे हम आपको यह भी बता दें कि आजकल लोग अपने घरों में श्रीमद्भगवद्गीता को रखते हैं और पूजा करते हैं. वैसे श्रीमद्भगवद्गीता का रचियता वेदव्यास को माना जाता है. जी दरअसल श्रीमद्भगवद्गीता को भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में मान्यता प्राप्त है और ऐसा माना जाता है कि ये कोई धर्म का ग्रन्थ नहीं बल्कि मानवता का ग्रन्थ है.
अब आज हम आपको एक ऐसी श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में बताने जा रहे हैं जो दुनिया की सबसे बड़ी पुस्तक कही जाती है. जी दरअसल इस पुस्तक का एक पन्ना पलटने के लिए तीन लोगों की शक्ति लगती है. वैसे अब आप ज्यादा सोचिये मत क्योंकि हम बात कर रहे है अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की जिसको इस्कॉन मंदिर में रखी श्रीमद्भगवद्गीता की. यहाँ रखी श्रीमद्भगवद्गीता का वजन करीब 800 किलो है और इस श्रीमद्भगवद्गीता के एक पन्ने को पलटने के लिए तीन से चार लोगों की जरूरत पड़ती है. जी दरअसल इस गीता की पुस्तक को इटली में बनाया गया है और इस पुस्तक को समुंद्र के रास्ते से भारत लेकर आए थे.
कहा जाता है इसे भारत लाने के लिए करीब 5 साल से ज्यादा का समय लग गया था. वैसे श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में बात करें तो यह दुनिया के हर इंसान को कर्म का पाठ पढ़ाती है. गीता में एक श्लोक है. "गीताया: पुस्तकं यत्र पाठ: प्रवर्तते" तत्र सर्वाणि तीर्थानी प्रयागादीनि तत्र वै .. इस श्लोक का अर्थ है कि दहां गीता की पुस्तक होती है औऱ जहां गीता का पाठ होता है. वहां प्रयागादि सर्व तीर्थ निवास करते है.
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