हर दिन आप सुबह उठकर जब दांत मांजकर मुंह धो लेते हैं और सुबह की ताज़गी में खुद को अंर्तमन से तरोताज़ा कर लेने की चाहत आपके दिल में उमंगे रखती हैं, ऐसे में सुबह का अख़बार भी तब तक पढ़ने में मज़ा नहीं आता है जब तक कि चाय की गरमा गर्म प्याली और महकती हुई कड़क चाय आपके पास न पहुंच जाऐ। जी हां, हम भारतीय तो इस मामले में ठेठ देसी हैं। यहां तो सर्दियों में भी तड़के 5 बजे उठने वालों को अदरक की खुशबूदार चाय की आवश्यकता होती है।
दरअसल भारत विश्व में चाय के उत्पादकों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है यही नहीं यह चाय का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार भी है। ऐसे में चाय का महत्व इस देश के लिए कहीं अधिक है। तो चाय की चुस्कियों के साथ ही लोग मन में यह कह उठते हैं तो उस्ताद कुछ ताज़ा हो जाए। कोई चाय के रंग को पसंद करता है तो कोई उसके कड़क असर को। मगर चाय सभी को लुभाती है।
चाय को लेकर एक दिलचस्प कथा प्रचलित है। जिसके तहत यह कहा जाता है कि एक बार एक महर्षि अपनी तपस्या कर रह रहे थे। वे तपस्या में लीन थे। इसी दौरान उनकी तपस्या भंग हुई उनकी आंख खुली तब उन्होंने अपनी आंख की पलक को अंगुलियों में पकड़कर आंख पूरी तरह से खोलने का प्रयास किया। ऐसे में उनकी अंगुलियों से कुछ कण छूटे जो कि धरती पर गिरते ही खुशबूदार चाय के तौर पर बदल गए। हालांकि यह केवल कहानी ही कही जाती है।
विश्वभर में चाय एक गुणकारी और स्वादिष्ट पेय माना जाता है। चाय, काॅफी और भारतीय काढ़ा किसी - किसी मर्ज़ के लिए अचूक औषधी भी माने जाते हैं। मेहंदी के रंगों से हाथों को रचाना हो या फिर सर्दी से निजात पाना हो चाय का पानी इसके लिए उपयोगी साबित होता है तो सर्दी भगाने के लिए काढ़ा बेहतरीन उपाय होता है। विश्व में चाय की लोकप्रियता और इसके प्रति लोगों की दीवानगी को लेकर विश्वभर में 15 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस मनाया जाता है।
हालांकि चीन को चाय का जन्मस्थान कहा जाता है। पानी के बाद यह सबसे ज़्यादा पीने वाला पेय माना जाता है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में 1500 से भी ज़्यादा पेय पीने योग्य माने जाते हैं। मगर इस तरह के प्रकार में रंगों के आधार पर भी वर्गीकरण होता है। जिसमें काली, सफेद, हरी, ऊलांग और काली चाय भी प्रमुख मानी जाती है।
वैसे देश में भारतीय चाय के साथ ही ग्रीन टी, हर्बल टी, ब्लैक टी, लैमन टी बेहद लोकप्रिय मानी जाती है। कहीं कहीं काली चाय को रेड टी भी कहा जाता है। आमतौर पर भारतीय लोग अलग तरह की चाय में रूचि रखते हैं। मगर स्वास्थ्य के लिए चाय की पत्तियों को उकाल- उकालकर उपयोग करना और दूध चाय में ही उबालना स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा नहीं माना जाता है।
एक अनुमान के अनुसार विश्वभर में करीब 30 लाख टन चायपत्ती का उत्पादन होता है। क्या आप जानते हैं ग्रीन टी से उदर रोग और कैंसर जैसे रोगों में राहत मिलती है। दूसरी ओर भारतीय लोग चाय में अदरक, कालीमिर्च, सौंठ, सौंठ पावडर, तुलसी आदि मिलाकर इसे काढ़े के तौर पर प्रयोग करते हैं।
सर्दियों में यह बेहद लाभप्रद होता है। हमारे देश के बारे में कहा जाता है अनेकता में एकता देश की विशेषता यही विशेषता चाय बनाने के तरीकों में भी नज़र आती है। दरअसल पश्चिम बंगाल और आसाम में चाय टी स्टाॅलों तक ताज़ा ही प्रयुक्त होती है। अर्थात् चाय के अधिकांश बागान वहीं हैं और ऐसे में बागानों की खुशबू सीधे आपकी प्याली में उड़ेली जाती है। यहां पर चाय बनाने के लिए टीमशीनें आज भी वहीं हैं जो अंग्रेज भारत से रूखसत होते समय छोड़ गए थे।
जी हां, यहां पर चाय की पत्तियों को लीकर अंदाज़ में गर्म किया जाता है। गर्म! बराबर। मशीन में एक बाॅयलर होता है जिसके माध्यम से पानी गर्म होता है। इस गर्म पानी के कंटेनर के दूसरी ओर चलनीनुमा पात्र होता है जिसमें चाय पत्ती रखी जाती है। इस चाय पत्ती को गर्म पानी के संपर्क में लाया जाता है मगर चायपत्ती और पानी अलग - अलग रहते हैं।
फिर कंटेनर से निकले पेय को केटली में भरकर या फिर सीधे ग्लास में उड़ेल दिया जाता है। ग्राहक अपने अनुसार शक्कर डलवाता है। इस तरह से कई क्षेत्रों में लीकर चाय ही अधिक पी जाती है। चाय का यह कारोबार अलग - अलग क्षेत्रों में अलग तरह से चलता है। स्वाद के लिए चाय में इलायची व अन्य सुगंधित फ्लेवर भी डाला जाता है। जिससे चाय ज़ायकेदार होती है और ग्राहक को उस दुकानदार से प्रेम होता है।