world senior citizens : इंसान में आत्मविश्वास हो तो क्या नही कर सकता, जानिए दिलचस्प कहानी
world senior citizens : इंसान में आत्मविश्वास हो तो क्या नही कर सकता, जानिए दिलचस्प कहानी
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इस समय देश में अनेक चुनौतियां भी बुजुर्गों की संख्या में इजाफे से ‘बढ़ती उम्र’ आदि की वजह से आ रही हैं. 25 वर्षों में यह संख्या 10 से बढक़र 23 प्रतिशत होने का अनुमान है. ऐसे में पारिवारिक सदस्यों के लिए बुजुर्गों की देखभाल अहम काम होगा.वरिष्ठ नागरिक परामर्श केंद्र के प्रभारी एनएस जादौन ने बताया, बुजुर्गों की देखभाल व सुरक्षा के लिए वरिष्ठ नागरिक परामर्श केंद्र बनाया है. यहां बेटे-बेटियों को बुजुर्गों को साथ रखने का सुझाव दिया जाता है.पुलिस के अमराई वरिष्ठ नागरिक परामर्श व कल्याण संघ द्वारा संचालित केंद्र में अनेक बुजुर्गों की समस्याएं हल की गईं. अपने बयान में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया, केंद्र की स्थापना को ४ साल हो गए. अब तक 700 से अधिक प्रकरण मिले हैं, जिनमें बुजुर्गों को न्याय दिलाकर परिजन के साथ सुलह करवाई गई. बुजुर्ग पारिवारिक हिंसा, जमीन-जायदाद हड़पने, भरष-पोषण न करने जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं. इसमें अमीर-गरीब दोनों वर्ग हैं. आलंबन ने बुुजुर्गों का भरण-पोषण व कल्याण अधिनियम 2007 का उपयोग कर उन्हें न्याय दिलाना प्रारंभ किया है आइए जानते है कुछ मामले 

जिंदा दिली की वजह से शुरू की जिंदगी की दूसरी पारी : नौकरी या काम से रिटायर होने का मतलब ये नहीं होना चाहिए कि घर में बैठकर टीवी देखते रहें और जिंदगी सिर्फ कॉलोनी के पार्क तक सीमित हो जाए. ६० पार के बाद भी जिंदगी को युवकों जैसे उत्साह से जिया जा सकता है, अगर इच्छाशक्ति हो. यह बात साबित भी कर रहे हैं शहर के कुछ बुजुर्ग. इंटरनेशनल डे ऑफ ओल्डर पर्संस के मौके पर पत्रिका ने कुछ ऐसे  बुजुर्गों से बात की जो जिंदगी खुलकर जीते हैं और उन्होंने एडवेंचर को जिंदगी का हिस्सा बना लिया है.

अपने जीवन की दूसरी पारी की शुरुआत ट्रैकर बनकर : 68 साल के गिरीश सोनी को बचपन से ट्रैकिंग का शौक था. एनसीसी और स्काउट में रहते हुए ट्रैकिंग की भी थी लेकिन नौकरी के चलते वे इसे जारी नहीं रख सके.रिटायरमेंट के बाद वे यूथ होस्टल से जुड़े और अब पांच- छह साल से रेगुलर ट्रैकर बन गए हैं. लोकल ट्रैकिंग के साथ नेशनल ट्रैक पर भी जाते हैं। उनका कहना है कि रिटायरमेंट के बाद घर में टीवी देखते रहना उन्हें कभी पसंद आया ही नहीं इसलिए उन्होंने एडवेंचर चुना. उनका कहना है कि उम्र तो केवल एक नंबर है असली चीज तो है जीने का उत्साह और वह हमेशा भरपूर होना चाहिए.

रिटायरमेंट के बाद 19 हजार किमी बाइकिंग : दिलीप चौहान दो बरस पहले बैंक की नौकरी से रिटायर हुए, तब उन्होंने एक मोटरसाइकिल खरीदी और पत्नी के साथ निकल पड़े भारत यात्रा पर. उन्होंने इसी साल 127 दिन की यात्रा में पूरा भारत, नेपाल और भूटान को बाइक से नाप लिया. पत्नी पूजा पूरे समय उनके साथ रहीं. चौहान रोज 300 किमी बाइक चलाते थे। भूटान के दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर उन्होंने बाइक चलाई है. वे बाइक से ही लेह-लद्दाख की यात्रा भी कर आए और कशमीर घाटी भी बाइक से घूमी. उनके हौंसले को डायबिटीज भी नहीं हरा सकी. बस वे इतना करते थे कि ग्लूकोमीटर साथ रखते थे और उसकी रीडिंग के हिसाब से खान-पान तय करते. उन्होंने कहा वे मुश्किल सफर पत्नी पूजा के सहयोग से ही पूरा कर सकें.

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