जन-जन की भाषा है....भारत माता के भाल की बिंदी है हिन्दी
जन-जन की भाषा है....भारत माता के भाल की बिंदी है हिन्दी
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style="color: rgb(34, 34, 34); font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; text-align: justify;">यूं तो हिन्दी को हम अपनी मातृ भाषा होने का सम्मान देते है और इसके संवंर्द्धन, संरक्षण के लिये भी बड़ी-बड़ी बातें हुआ करती है, परंतु वास्तविक स्थिति से हम सभी अवगत है। खैर जब बात विश्व हिन्दी दिवस की हो रही है तो हिन्दी की विशेषता का भी उल्लेख करना प्रासंगिक होगा। 
 
हिन्दी शब्द व्यापक ही नहीं बल्कि इसमें गंभीरता भी छुपी हुई है। जिस हिन्दी की हम बात कर रहे है, उसने देश ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों को भी एक सूत्र में बांधा है। सरल भाषा का गौरव हांसिल करने वाली हिन्दी एक मात्र ऐसी भाषा है जिसे न केवल विश्व भर में करोड़ों लोग बोलते है वहीं चीनी भाषा के बाद यह विश्व की दूसरी भाषा भी है, बावजूद इसके हिन्दी अभी भी अपने गौरव और सम्मान को प्राप्त करने में छटपटा रही है, यदि यूं कहे तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, अस्तु। तथापि हिन्दी जन-जन की भाषा ही नहीं भारत माता के भाल की बिन्दी है....।
 
विश्वविद्यालयों में हिन्दी
 
जानकारी के मुताबिक अभी विश्व के करीब 130 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। रही बात भारत की, तो यहां संचालित होने वाले अधिकतर विश्वविद्यालयों में हिन्दी के लिये अलग वे विभाग है और विषय विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में विद्यार्थियों को हिन्दी भाषा में पारंगत किया जाता है।
 
मीडिया और हिन्दी
 
यूं तो विश्व के जितने भी देश है, वहां स्वयं की बोलचाल वाली भाषा या प्रमुख भाषाओं मंे ही समाचार पत्रों का प्रकाशन होता है और प्रसार संख्या भी कम नहीं आंकी जाती, लेकिन भारत के हिन्दी भाषा राज्यों में यदि समाचार पत्रों की बात की जायें तो हिन्दी ही सर्वोच्च शिखर पर परिलक्षित होती है। समय, काल परिस्थितियों के अनुसार शुद्ध हिन्दी तो खत्म होने की कगार पर है, लेकिन ’हिन्दुस्तानी’ भाषा अर्थात मिक्स भाषा का उपयोग जरूर हिन्दी की गौरवगाथा के गौरव को समाचार पत्रों में बनाये हुये है। मिक्स भाषा का अभिप्राय-हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू से है। देखिये एक बानगी- 

हिन्दी की सेवा करते संगठन.....
 
हिन्दी कर सेवा, संरक्षण आदि के लिये विविध संगठन है और नित नये गठन होने की भी जानकारी प्राप्त होती है। परंतु यर्थाथ के धरातल पर अधिकांश संगठन ’जेबी संगठन’ बने बैठे हुये है और पदाधिकारी स्वयंभू। जिन्हें सिवाय ’अतिथि’ बनने या समाचार पत्रों में समाचार छपवाने की ’भूख’ होती है। खैर, जो सत्य है उसे स्वीकार करना ही चाहिये, लेकिन यदि हिन्दी के नाम पर बने संगठन, हिन्दी को स्थापित करने की दिशा में निःस्वार्थ भाव से कार्य करें तो निश्चित ही हिन्दी की स्थिति ’दयनीय’ नहीं रहेगी।
 
भारत और स्वतंत्रता.....
 
भारत की स्वतंत्रता में हिन्दी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्वाधीनता संग्राम के दौरान प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों ने न केवल लोगों को जागरूक किया वहीं अंग्रेजों के खिलाफ भी बिगूल फूंका। स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने वाले लोग जानते थे कि आम जनता हिन्दी ही समझती है और अंग्रेजों को हिन्दी पल्ले नहीं पड़ती, इसलिये अपनी बात वे आसानी से पहुंचाते रहे तथा इसका परिणाम सार्थक रूप से 15 अगस्त 1947 के दिन भारत की आजादी के रूप में आया। स्वतंत्रता के बाद भी हिन्दी विकास के मार्ग पर गतिशील रही, लेकिन धीरे-धीरे हिन्दी का जो मटियामेट होना शुरू हुआ, उसकी परिणति समक्ष में दिखाई दे रही है। जब भारत में ही स्थिति ठीक नहीं है तो फिर विश्व के देशों की बात क्या की जाये।
 
कृपया हिन्दी का उपयोग  करें....
 
सरकारी कार्यालयों में हिन्दी भाषा का उपयोग करें या बैंकों आदि में ’यहां हिन्दी में चेक’ स्वीकारे जाते है...जैसे जुमले दिखाई देते है, बावजूद इसके अधिकांश लोग अंग्रेजी का उपयोग करना अपनी शान समझते है। ऐसे ही हिन्दी की बात करने वाले कतिपय लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ाते है, क्योंकि उनकी मानसिकता हिन्दी को लेकर यह है कि यह है कि उनकी इज्जत क्या रह जायेगी....! तथापि हिन्दी तो हिन्दी है, क्योंकि यह हमारे जीवन के रंग में घुली हुई है...।
 
जन-जन की भाषा है हिन्दी
भारत की आशा है हिन्दी
हिन्दुस्तान की गौरवगाथा है हिन्दी
भारत माता के भाल की बिन्दी है हिन्दी....जय हो हिन्दी । 
                                                                                        - शीतलकुमार ’अक्षय’
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