विकलांग होना कोई पाप नहीं है और न ही इसमें व्यक्ति को अपने भाग्य को किसी तरह का दोष नहीं दिया जाना चाहिए। बल्कि विकलांगता एक मौका है। जिससे व्यक्ति अपनी कमियों को भी उभारकर दुनिया में बेहतर कर सकता है। यदि वह कुछ भी बेहतर न करे तो भी वह आत्मसंतुष्ट हो सकता है। यही बातें विश्व के कुछ लोगों द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं। इंटरनेशनल डे ऑफ़ डिसैबिलिटीज ऐसे ही लोगों को सलाम करने का अवसर है। ऐसे लोगों ने स्वयं अपनी विकलांगता को नकारते हुए दुनिया के सामने कुछ अलग उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।
इंटरनेशनल डे ऑफ़ डिसैबिलिटीज 3 दिसंबर को सेलिब्रेट किया जाता है। यह दिन शारीरिक तौर पर अक्षम लोगों को देश की प्रमुख धारा में लाने के लिए मनाया जाता है। हर साल विकलांगों के हितों में विविध आयोजन किए जाते हैं। इंटरनेशनल डे ऑफ़ डिसैबिलिटीज का उद्देश्य आधुनिक समाज में शारीरिक तौर पर अक्षम लोगों के साथ किए जा रहे भेदभाव को खत्म करना है। इसे लेकर समाज में विभिन्न संस्थाओं द्वारा कार्य किया जाता है।
विश्व में ऐसी कई हस्तियों के उदाहरण मौजूद हैं जो अपनी कमियों से नहीं हुनर से जाने गए। सुधाचंद्रन भारत की एक लोकप्रिय नृत्यांगना और टेलिविजन की बेहद ही प्रतिभावान कलाकार और अभिनेत्री हैं। उनका एक पैर नहीं है। मगर इसके बाद भी वे अपने नृत्य और अभिनय से दर्शकों का मन मोह लेती हैं। दरअसल भौतिकी के क्षेत्र में सबसे चमकदार नाम अल्बर्ट आईंस्टीन मानसिक तौर पर बहुत ही कमजोर माने गए। उनकी प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं हो सकी। बाद में आईंस्टीन दुनिया के महान वैज्ञानिक बने। विश्व के शीर्ष वैज्ञानिक स्टीफन हाॅकिंग चलने में अक्षम हैं मगर इसके बाद भी वैज्ञानिक के तौर पर वे कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन्स को अंजाम देते हैं व बोलने में भी अक्षम हैं। हेलेन केलर विश्व की पहली विकलांग ग्रेजुएट मानी गई हैं। हलेन केलर देखने और सुनने में अक्षम हैं। इसके बाद भी उन्होंने अपना अध्ययन पूर्ण किया वे अमेरिका की शीर्ष लेखक और शिक्षक बनीं।
रवींद्र जैन: आंखों की रोशनी न होने के बाद भी उन्होंने टेलिविजन के दौर में अपनी सुंदर आवाज़ और सुंदर पंक्तियों से धार्मिक सीरियल्स में जादू बिखेर दिया। उन्होंने फिल्मों में भी अपना संगीत दिया। अमेरिका के लोकप्रिय राष्ट्रपति रूजवेल्ट चलने फिरने में अक्षम हो गए थे मगर इसके बाद भी वे नेतृत्व में शानदार काम करते थे।
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