क्या आपको भी अच्छी लगती है ऊन पर दौड़ती सलाई
क्या आपको भी अच्छी लगती है ऊन पर दौड़ती सलाई
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कभी आपने अपनी मम्मी या नाना और दादी को स्वेटर बुनते हुए देखा है। ऊन के गोल गट्ठे से धागे की तरह ऊन निकालकर बुनने की दो सलाई को एक दूसरे पर चढ़ाकर स्वेटर बनता देखना कितना आश्चर्यजनक लगता है। जिस पर यदि ऊन का वह गोला हाथ से छिटककर गिर जाए तो फिर लुढ़कते हुए उस गोले को पकड़ना भी बच्चों के खेल जैसा लगता है। हां मगर अब आपके आसपास धूप सेंकते हुए या फुर्सत के पलों में स्वेटर बुनती महिलाओं के नज़ारे कम ही देखने को मिलते हैं शायद अब तो आपको हाथ से स्वेटर बुनने वालों को ढूंढना भी पड़े।

आखिरकार अब स्वेटर बुनते हुए कोई भी नज़र नहीं आता है। आखिर क्या कारण है कभी आपने सोचा है। पहले तो हाथ से बने स्वेटर ही लोगों की पसंद हुआ करते थे। महिलाऐं एक दूसरे से स्वेटर की डिज़ाईन्स पर चर्चा करती थीं मैग्ज़ीन्स में स्वेटर बुनने की स्टाईल के बारे में जानकारियां छपा करती थीं, मगर अब ऊन का गोला लेकर स्वेटर बुनने के दृश्य ही हवा से हो गए हैं। जी हां यह सब हुआ है हमारे जीवन के पल व्यस्त हो जाने के कारण और इससे अधिक महिलाओं के कामकाजी हो जाने के कारण।

एक और भी कारण है इस तरह के नज़ारे न दिखाई देने का वह है- परिवार सिमटना। अब बेटे और बहु पारिवारिक कारणों से या फिर नौकरी पेशा होने के कारण अपने माता पिता से दूर रहते हैं। यदि ये दोनों ही महानगरों में रहते हों तो फिर गृहस्थी का खर्च चलाना बेहद मुश्किल होता है। ऐसे में महिला और पुरूष दोनों को ही नौकरी पेशा होना पड़ता है और व्यस्तता के कारण स्वेटर बुनने की कला में महिलाऐं इंट्रेस्ट नहीं दिखातीं।

दूसरी ओर अब रेडिमेड वूलन गारमेंट्स बड़े पैमाने पर बाजार में आने लगे हैं जिसे खरीदकर महिलाऐं झंझट और समय दोनों से मुक्ति पाती हैं। मगर आज भी सर्दियां आते ही मम्मी दादी नानी द्वारा हाथ से बुने जाने वाले वूलन गारमेंट्स की चर्चा होने लगती है।

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