पति की लम्बी उम्र के लिए ही उसे मरा समझ लेती हैं यहां की महिलाएं
पति की लम्बी उम्र के लिए ही उसे मरा समझ लेती हैं यहां की महिलाएं
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सदुनिया में कई तरह की परंपरा निभाई जाती हैं, जिनके बारे में ना तो हम सुन पाते हैं और ना ही उनके बारे में जानकर यकीन कर पाते हैं. ऐसे भी देश हैं जहां पर अजीब तर्ज के रिवाज परंपरा के नाम पर चलाये जाते हैं और सालों से चले भी आ रहे हैं. ऐसे ही एक गांव की परम्परा के बारे में बताने जा रहे हैं जो हैरान कर देने वाला है. बता दें, यहां की महिलाएं सुहागन होने के बाद भी विधवा ही रहती हैं. लेकिन ऐसा क्यों हैं आइये आपको बता देते हैं. 

दरअसल, यह परम्परा गछवाह समुदाय से जुडी है.  यह समुदाय पूर्वी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर, देवरिया और इससे सटे बिहार के कुछ इलाकों में रहता है. यहां महिलाएं तीन माह तक मांग में सिंदूर नहीं भरती और पति के सलामती के लिए अपने इष्ट की पूजा में जुटी रहती है. तीन माह बाद जब पति वापस लौटता है तो वे फिर सुहागन की तरह जीवन व्यतीत करने लगती है. ऐसा हर साल होता है. महिलाओं को इस टोटके पर पूरा भरोसा है. वहीं परिवार के लोगों को विश्वास है कि ऐसा करने से ही उनके अपने सलामत रहते है. इसी अन्धविश्वास के चलते महिलाएं यहां पर विधवा बनकर रहती हैं. 

गछवाह की महिलाये, इन चार महीनो में ना तो मांग में सिन्दूर भरती है और ना ही कोई श्रृंगार करती है. वे अपने सुहाग कि सभी निशानिया तरकुलहा देवी के पास रेहन रख कर अपने पति कि सलामती कि दुआ मांगती है. आपको बता दें,  ये समुदाय ताड़ी के पेशे से जुड़ा है. इस समुदाय के लोग ताड़ के पेड़ों से ताड़ी निकालने का काम करते है. ताड़ के पेड़ 50 फीट से ज्यादा ऊंचे होते है तथा एकदम सपाट होते है. इन पेड़ों पर चढ़ कर ताड़ी निकालना बहुत ही जोखिम का काम होता है. ताड़ी निकलने का काम चैत मास से सावन मास तक, चार महीने किया जाता है. 

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