धार्मिक वर्ग में क्यों अनसुनी हो जाती है महिला भागीदारी की बात!
धार्मिक वर्ग में क्यों अनसुनी हो जाती है महिला भागीदारी की बात!
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इन दिनों देश - विदेश में एक प्रमुख उत्सव की चर्चा है। जिसमें सिंहस्थ 2016 की ही बात हो रही है। इस आयोजन में जहां धर्म का रंग नज़र आ रहा है वहीं कई नए आयाम भी जुड़े हैं। वैभव और विलासिता को स्वयं से दूर रखने वाले साधु - संत अब सजावट, पांडालों की भव्यता, हाईटैक टेक्निक से खुद को लैस कर चुके हैं। इस सिंहस्थ में कई ऐसी बात है जो इसे अन्य आयोजनों से अलग बनाती है। आधुनिक दौर में जहां हर कहीं महिलाओं की भागीदारी की बात हो रही है। स्वयं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक महिलाओं के हर क्षेत्र में योगदान को रेखांकित करने में लगे हैं।

ऐसे में यदि महिलाओं के अखाड़े को मान्यता नहीं मिलती है तो यह एक गंभीर बात होती है। आज जहां महिलाऐं पुरूषों के साथ हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं। जिस वर्ग को अब लड़ाकू विमान उड़ाने की अनुमति मिल चुकी है जो वर्ग भारत में राजनीतिक रूप से 33 प्रतिशत भागीदारी की ओर अग्रसर हो रहा है। जो महिलाऐं घर से लेकर व्यापार तक सबकुछ संभाल रही हैं उन्हीं महिलाओं को धर्म की पायदान पर पीछे कर दिया गया है। जबकि धार्मिक रीतियों में बिना महिलाओं के कई विधियां संपन्न नहीं होती हैं।

ऐसे में महिलाओं का धर्म में भी महत्वपूर्ण स्थान है। हालांकि अखाड़ों की मान्यताओं का संबंध अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का है और यह उनका अपना मसला हो सकता है लेकिन जिस दौर में महिलाओं को मंदिरों के गर्भगृह में, किसी मंदिर के चबूतरे तक दर्शन की अनुमति देने की मांग की जा रही हो वहां यदि साधुओं और संतों के डेरे में महिला अखाड़े को मान्यता न मिले तो यह आश्चर्यनक जरूर रहता है। इन दिनों महिलाओं के अखाड़े परि अखाड़े की संस्थापक साध्वी त्रिकाल भवंता अनशन पर हैं।

सात दिनों से उन्होंने अन्न - जल का त्याग किया हुआ है। एक ऐसा आयोजन जिस पर विश्वभर की नज़रें हों उसमें एक साध्वी का इस तरह से अनशन करना बेहद गंभीर बात है। जिसके कारण उनकी समस्याओं पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। दूसरी ओर जब संतों के डेरों में शामिल साध्वियां नदी के घाटों पर स्नान का धार्मिक लाभ ले सकती हैं तो महिला अखाड़े को भी स्नान करने की अनुमति दी जाना चाहिए।

अखाड़ा परिषद इन साध्वियों के स्नान पर आपत्ती नहीं ले रहा है लेकिन उन्हें पृथक अखाड़े के तौर पर मान्यता भी नहीं दे रहा है। ऐसे में धर्मिक  और आधुनिक मान्यता के बीच तकरार हो रही है। जिसमें श्रद्धालुओं की आस्था ही आहत हो रही है। 

'लव गडकरी'

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