संसद के शोर के बीच विकास के लिए कैसे हो धन का इंतजाम
संसद के शोर के बीच विकास के लिए कैसे हो धन का इंतजाम
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क्लासरूम में अक्सर शोर - गुल होने पर बच्चों को कहा जाता है आखिर ये संसद क्यों लगा रही है। जी हां संसद एक ऐसा उदाहरण है जो सांसदों के शोरगुल और हंगामे के लिए बेहद आसानी से दिया जाता है। दरअसल संसद का शीतकालीन सत्र फिर से हंगामाखेज कार्रवाई की भेंट चढ़ता नज़र आ रहा है। सरकार के सारे प्रयास विपक्ष के हंगामे से विफल हो रहे हैं। कुछ समय पहले संसद में संविधान और डाॅ. आंबेडकर पर चर्चा का माहौल बना। सभी सांसदों ने इसमें बराबरी से भागीदारी की और एक दूसरे की बात सुनी लेकिन फिर संसद का सत्र हंगामे की भेंट चढ़ता जा रहा है।

यह वह समय है जब संसद में महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए जाने हैं। ऐसे विधेयक जो सरकार के राजकोष को बढ़ा सकते हैं। जीएसटी विधेयक को लागू करने की सख्त जरूरत है। यदि यह बिल पारित होता है तो सरकार का राजकोष काफी हद तक बढ़ सकता है। हालांकि जीएसटी को लेकर कई तरह के पेंच सामने हैं। विपक्ष का मानना है कि इस बिल के पेश होने पर महंगाई बढ़ेगी।

मगर सरकार के खाली होते खजाने और विकासीय योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए गुड्स एंड सर्विस टैक्स का पारित होना जरूरी है। मगर शीतकालीन सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ता जा रहा है। इस सत्र में भी जबरदस्त हंगामा हुआ। विपक्ष ने बिलों को पारित न होने देने के एवज में नेशनल हेराल्ड के मसले पर सरकार से सवाल किए। विपक्ष के आरोपों को गलत बताने में ही सत्तापक्ष लगा रहा। ऐसे में जीएसटी बिल पेश नहीं हो पा रहा है।

हंगामे से विकास की रफ्तार में गतिरोध पैदा हो गया है। जनता और सरकार कांग्रेस से अपील कर रही है कि वह सदन में विपक्ष की सकारात्मक भूमिका निर्वहन कर देश के विकास को गति प्रदान करे। मगर देश की संसद जहां पर विभिन्न क्षेत्रों से चुने हुए प्रतिनिधि पहुंचते हैं, वह सांसदों के कार्यों से किसी क्लासरूम से कम नज़र नहीं आ रहा है। 

'लव गडकरी'

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