क्यों कटा था परशुरामजी ने अपनी माँ का सर
क्यों कटा था परशुरामजी ने अपनी माँ का सर
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परशुराम के पिता का नाम जमदग्नि तथा माता का नाम रेणुका था. परशुराम के चार बड़े भाई थे लेकिन गुणों में यह सबसे बढ़े-चढ़े थे. एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका मोहित  हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं. हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी. लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया. तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई.

परशुरामजी के अन्य भाई अपनी माता के मोहवश उनका सर नहीं काट पाए तब अपने  पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का सर काट दिया. यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा. तो उन्होंने तीन वरदान माँगे-माँ पुनर्जीवित हो जायँ,भाई चेतना-युक्त हो जायँ ,उन्हें मरने की स्मृति न रहे,जमदग्नि ने उन्हें तीनो वरदान दे दिये. माता तो पुनः जीवित हो गई पर परशुराम पर मातृहत्या का पाप चढ़ गया.

इस कहानी के अगले भाग में बतायेगे की कैसे मिली थी परशुराम जी को मात्र हत्या के पाप से मुक्ति

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