ज्ञानवापी मस्जिद पर क्यों मचा है बवाल, जानें क्या है इस विवाद की जड़
ज्ञानवापी मस्जिद पर क्यों मचा है बवाल, जानें क्या है इस विवाद की जड़
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शिव की नगरी काशी आजकल किसी और वजह से सुर्खियों में है। यहां स्थित ऐतिहासिक ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर इन दिनों खासा बवाल मचा है क्योंकि अदालत के आदेश पर इस मस्जिद का सर्वे और वीडियोग्राफी की जा रही है। इस सर्वे पर एक संप्रदाय के लोगों को ऐतराज है, जबकि दूसरे संप्रदाय के पास भी अपने दावे और तर्क हैं। दोनों ही संप्रदाय इस परिसर पर अपना दावा ठोक रहे हें। अयोध्या में बरसों बाद राम जन्मभूमि विवाद का हल निकलने और राम मंदिर बनने का रास्ता साफ होने के बाद अब ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा तूल पकड़ रहा है। लोगों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पहले यहां मंदिर हुआ करता था, जिसे तोड़कर यहां पर मस्जिद बनाई गई। इसी आधार पर हिंदू पक्ष इस पर अपना दावा जता रहा है। हालांकि यह मामला जितना सीधा दिखाई देता है उससे कहीं ज्यादा पेचीदा है। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि इस मस्जिद से जुड़ा विवाद आखिर है क्या और इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई। तो चलिए, आपको बताते हैं इस विवाद से जुड़ी हर एक बात।


मस्जिद को लेकर क्या हैं दावे

ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी की बेहद पुरानी और ऐतिहासिक मस्जिद है। इस मस्जिद को लेकर इतिहासकारों और हिंदू व मुस्लिम पक्ष के अपने अलग-अलग दावे हैं, लेकिन इन सबके बीच जो  सबसे प्रचलित मान्यता है, वो यह है कि मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1664 में इस मस्जिद को बनवाया था। जैसा कि आप जानते होंगे कि भारत में अपने शासनकाल के दौरान औरंगजेब ने सैकड़ों हिंदू मंदिरों को गिरवा दिया था। इसी तरह ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पर भी पहले  मंदिर हुआ करता था और औरंगजेब ने उस मंदिर को गिराकर वहां मस्जिद बनवाई। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण मुगल शहंशाह अकबर के जमाने में यानी 1585 में हुआ। अकबर ने दीन-ए-इलाही नाम के एक नए धर्म की शुरुआत की थी और यह मस्जिद उसी धर्म के तहत बनवाई गई थी।


मंदिर के बारे में भी हैं दावे

वहीं दूसरी ओर मंदिर को लेकर यह दावा यह है कि यहां प्राचीन काल से भगवान विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थापित था और सम्राट विक्रमादित्य ने इसी ज्योतिर्लिंग के आसपास मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद मुगल बादशाह अकबर के दरबार के नवरत्नों में शामिल राजा टोडरमल ने इस मंदिर को और विशाल रूप दिया, लेकिन औरंगजेब ने अपने शासनकाल में इस मंदिर को तोड़ने का हुक्म सुना दिया। औरंगजेब के इस हुक्म का जिक्र उसी वक्त लिखी गई मशहूर किताब मआसिर-ए-आलमगीरी में है। यह किताब साकी मुस्तैद खान ने अरबी भाषा में लिखी है। इसकी असली प्रति आज भी कोलकाता की एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल में मौजूद है। यह भी कहा जाता है कि मंदिर का एक हिस्सा नहीं तोड़ा गया और बाद में इसी हिस्से में पूजा-पाठ जारी रही। वहीं मंदिर से सटी हुई जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करा दिया गया। इसके बरसों बाद इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर ने 1735 में यहां फिर से मंदिर बनवा दिया, जोकि आज के काशी विश्वनाश मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। वहीं एक दूसरा दावा यह भी है कि विवादित ढांचे के नीचे एक विशाल स्वयंभू शिवलिंग है।

 
अदालत की चौखट तक कैसे पहुंचा मामला

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की खबर भले ही आपको अभी लगी हो, लेकिन यह मामला तीन दशक से भी ज्यादा समय से अदालत में चल रहा है। इस मामले में हिंदू पक्ष की ओर से दायर याचिका के मुताबिक, अंग्रेजों ने 1928 में पूरे मामले का अध्ययन कर यह जमीन हिंदुओं को सौंपी थी। इस आधार पर यह पक्ष ज्ञानवापी परिसर पर अपना दावा जता रहा है। साल 1991 में सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय ने वादी के तौर पर प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विशेश्वर की ओर से अदालत में मुकदमा दायर। इसके बाद मस्जिद समिति ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 का हवाला देकर इस दावे को चुनौती दी। 1993 ने इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसे मामले में स्टे ऑर्डर दिया और तब से यह मामला वहीं रुका रहा।

 
ज्यादा पुराना नहीं श्रृंगार गौरी का मामला

ज्ञानवापी मस्जिद का मामला भले ही साल 1991 से अदालत में है, लेकिन मां श्रृंगार गौरी के मामले को महज 7-8 महीने ही हुए हैं। 18 अगस्त, 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी की एक अदालत में मां श्रृंगार गौरी के मंदिर में पूजा करने की इजाजत देने की मांग की। इस याचिका पर गौर करते हुए अदालत ने श्रृंगार गौरी मंदिर की मौजूदा स्थिति को जानने के लिए एक आयोग बनाया और उसे श्रृंगार गौरी की मूर्ति और ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी कराकर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा। पहले दो मौकों पर किसी वजह से वीडियोग्राफी नहीं हो सकी, लेकिन इस बार अदालत ने ताकीद की और 10 मई के पहले सर्वे और वीडियोग्राफी कर रिपोर्ट सौंपने को कहा।
 

सर्वे पर भड़के असदुद्दीन ओवैसी
 
वहीं इस मामले में अब एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का बयान आया है। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी- श्रृंगार गौरी परिसर के कुछ इलाकों के सर्वे पर अदालत का हालिया आदेश रथ यात्रा के रक्तपात और 1980-1990 के दशक की मुस्लिम विरोधी हिंसा का रास्ता खोल रहा है। वाराणसी की अदालत के आदेश की निंदा करते हुए ओवैसी ने एक ट्वीट में कहा, ‘काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करने का यह आदेश 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है, जो धार्मिक स्थलों के रूपांतरण पर रोक लगाता है।‘ ओवैसी ने कहा कि अयोध्या के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अधिनियम भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा करता है जो संविधान की बुनियादी खासियतों में से एक है।
 
 
 
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