समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट से क्यों जवाब मांग रही केंद्र सरकार
समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट से क्यों जवाब मांग रही केंद्र सरकार
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पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री की शादी को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं? इस पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच सुनवाई करने वाली है. लेकिन इस सुनवाई से ठीक पहले सेंट्रल गवर्नमेंट ने एक बार फिर समलैंगिक विवाह का विरोध भी कर दिया है. केंद्र ने हलफनामा दायर कर सभी याचिकाओं को खारिज करने की अपील भी की जा रही है. केंद्र ने बोला है कि शादियों पर फैसला सिर्फ संसद ही ले सकती है, सुप्रीम कोर्ट नहीं. 13 मार्च को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस केस को 5 जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर भी कर दिया गया. 

अब इस केस पर सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रविंद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस PS नरसिम्हा की बेंच 18 अप्रैल से सुनवाई करने वाली है. 

1. क्या है मामला?:

- दिल्ली हाईकोर्ट सहित अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं भी दर्ज की जा चुकी है. 

- बीते वर्ष 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की  अपील पर केंद्र से उत्तर मांगा था. इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की अपील भी की गई थी. 

- जिसके पूर्व 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस भी पेश कर दिया है. इन जोड़ों ने अपनी विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की अपील भी की है. इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर भी कर दिया है.

2. समलैंगिकों की क्या है मांग?:

- समलैंगिकों की ओर से दाखिल याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट सहित विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की अपील भी की गई है.

- समलैंगिकों ने ये भी मांग की है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार LGBTQ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में भी दिया जा रहा है. 

- एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की अपील भी की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव बिलकुल भी न किया जाए. 

3. केंद्र इसके विरोध में क्यों?:

- केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह की अनुमति देने के विरुद्ध है. इस केस में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर सभी याचिकाओं को खारिज करने की अपील की थी.

- केंद्र ने कहा था, भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं याचिकाकर्ता समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा करें.

- केंद्र ने समलैंगिक विवाह को भारतीय परिवार की अवधारणा के विरुद्ध बताया है. केंद्र ने कहा कि समलैंगिक विवाह की तुलना इंडियन परिवार के पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती. 

- कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं मिल पाएगी. क्योंकि उसमे पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के अनुसार दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा?

- कोर्ट में केंद्र ने बोला है , समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होने वाली है. इन केसों से संबंधित सभी वैधानिक प्रावधान पुरुष और महिला के मध्य विवाह पर आधारित हैं.

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