किसी भी काम की शुरुआत में क्यों लिया जाता है भगवान गणेश का नाम?
किसी भी काम की शुरुआत में क्यों लिया जाता है भगवान गणेश का नाम?
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हिन्दू धर्म में हर छोटी बड़ी चीज को बहुत महत्व दिया जाता है. अगर हम किसी भी प्रकार के काम कि शुरूआत कर रहे हैं तो आम तौर पर यही देखने को मिलता है कि उस काम को शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेश का आव्हान किया जाता है. आपने कभी इस बात पर गौर किया है की हमारे द्वारा जब भी किसी काम की शुरूआत की जाती है तो सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा अर्चना क्यों कि जाती है? अगर आप भी आज तक इस बात से अंजान है कि किसी भी काम की शुरूआत में भगवान गणेश को क्यों पूजा जाता है ताूे आप हम आपके इसी सवाल पर चर्चा करने वाले हैं. दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसकी वजह से भगवान गणेश को पूजा जाता है.

एक बार सभी देवों में यह प्रश्न उठा कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम किस देव की पूजा होनी चाहिए. सभी देव अपने को महान बताने लगे. अंत में इस समस्या को सुलझाने के लिए देवर्षि नारद ने शिव को निणार्यक बनाने की सलाह दी. शिव ने सोच-विचारकर एक प्रतियोगिता आयोजित की- जो अपने वाहन पर सवार हो पृथ्वी की परिक्रमा करके प्रथम लौटेंगे, वे ही पृथ्वी पर प्रथम पूजा के अधिकारी होंगे. सभी देव अपने वाहनों पर सवार हो चल पड़े. गणेश जी ने अपने पिता शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा की और शांत भाव से उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े रहे. कार्तिकेय अपने मयूर वाहन पर आरूढ़ हो पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटे और दर्प से बोले, ‘मैं इस स्पर्धा में विजयी हुआ, इसलिए पृथ्वी पर प्रथम पूजा पाने का अधिकारी मैं हूं.’

शिव अपने चरणें के पास भक्ति-भाव से खड़े विनायक की ओर प्रसन्न मुद्रा में देख बोले, ‘पुत्र गणेश तुमसे भी पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा कर चुका है, वही प्रथम पूजा का अधिकारी होगा.’ कार्तिकेय खिन्न होकर बोले, ‘पिताजी, यह कैसे संभव है? गणेश अपने मूषक वाहन पर बैठकर कई वर्षो में ब्रह्मांड की परिक्रमा कर सकते हैं. आप कहीं तो परिहास नहीं कर रहे हैं?’ ‘नहीं बेटे! गणेश अपने माता-पिता की परिक्रमा करके यह प्रमाणित कर चुका है कि माता-पिता ब्रह्मांड से बढ़कर कुछ और हैं. गणेश ने जगत् को इस बात का ज्ञान कराया है.’इतने में बाकी सब देव आ पहुंचे और सबने एक स्वर में स्वीकार कर लिया कि गणेश जी ही पृथ्वी पर प्रथम पूजन के अधिकारी हैं.

गणेश जी के सम्बंध में भी अनेक कथाएं पुराणों में वर्णित हैं. एक कथा के अनुसार शिव एक बार सृष्टि के सौंदर्य का अवलोकन करने हिमालयों में भूतगणों के साथ विहार करने चले गए. पार्वती जी स्नान करने के लिए तैयार हो गईं. सोचा कि कोई भीतर न आ जाए, इसलिए उन्होंने अपने शरीर के लेपन से एक प्रतिमा बनाई और उसमें प्राणप्रतिष्ठा करके द्वार के सामने पहरे पर बिठाया. उसे आदेश दिया कि किसी को भी अंदर आने से रोक दे. वह बालक द्वार पर पहरा देने लगा.

इतने में शिव जी आ पहुंचे. वह अंदर जाने लगे. बालक ने उनको अंदर जाने से रोका. शिव जी ने क्रोध में आकर उस बालका का सिर काट डाला. स्नान से लौटकर पार्वती ने इस दृश्य को देखा. शिव जी को सारा वृत्तांत सुनाकर कहा, ‘आपने यह क्या कर डाला? यह तो हमारा पुत्र है.’ शिव जी दुखी हुए. भूतगणों को बुलाकर आदेश दिया कि कोई भी प्राणी उत्तर दिशा में सिर रखकर सोता हो, तो उसका सिर काटकर ले आओ. भूतगण उसका सिर काटकर ले आए. शिव जी ने उस बालक के धड़ पर हाथी का सिर चिपकाकर उसमें प्राण फूंक दिए. तवसे वह बालक ‘गजवदन’ नाम से लोकप्रिय हुआ.

 

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