कहते हैं मंदिर या घर के पूजाघर में घंटी रखना जरुरी माना जाता है. जी दरअसल मंदिर के द्वार पर और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है. ऐसे में घंटी में विशेष प्रकार का नाद होता है जो आसपास के वातावरण को शुद्ध करता है. इसी के साथ यह घंटे या घंटियां 4 प्रकार की होती हैं जिनमे 1.गरूड़ घंटी, 2.द्वार घंटी, 3.हाथ घंटी और 4.घंटा. ऐसे में आज हम आपको सबके बारे में बताने जा रहे हैं.
1. गरूड़ घंटी : आप सभी को बता दें कि गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है.
2. द्वार घंटी : आपको बता दें कि यह द्वार पर लटकी होती है. यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है.
3. हाथ घंटी : यह पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं.
4. घंटा : आपको बता दें कि यह बहुत बड़ा होता है. कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा. इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है.
गरुड़ : आप सभी को बता दें कि भगवान गरुड़ को विष्णु का वाहन और द्वारपाल माना जाता है. ऐसे में अधिकतर मंदिरों में मंदिर के बाहर आपको द्वार पर गरुड़ भगवान की मूर्ति मिलेगी और दक्षिण भारत के मंदिरों में अक्सर इसे देखा जा सकता है.
अब आइए जानते हैं आखिर यह घंटा या घंटी क्यों रखते है-
1. जी दरअसल हिंदू धर्म सृष्टि की रचना में ध्वनि का महत्वपूर्ण योगदान मानता है. इसी के साथ ध्वनि से प्रकाश की उत्पत्ति और बिंदु रूप प्रकाश से ध्वनि की उत्पत्ति का सिद्धांत हिंदू धर्म का ही है. कहते हैं जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद था, घंटी की ध्वनि को उसी नाद का प्रतीक माना जाता है. यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है.
2. कहा जाता है जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है. इसी के साथ इससे नकारात्मक शक्तियां हटती है. वहीं नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वारा खुलते हैं और हर दिन सुबह और शाम को ही घंटी बजाने का नियम है.
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