करवाचौथ: आखिर क्यों छलनी से देखा जाता है चांद?
करवाचौथ: आखिर क्यों छलनी से देखा जाता है चांद?
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सनातन परंपरा में कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ के व्रत के रूप में मनाया जाता है। जी हाँ और इस पावन तिथि पर महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना लिए निर्जला व्रत रहती हैं। आपको बता दें कि इस साल करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा। ऐसे में आप सभी जानते ही होंगे इस दिन 16 श्रृंगार और पूजा में चांद को विशेष रूप से छलनी से देखने की परंपरा है। हालाँकि करवा चौथ की पूजा में चंद्र देवता को अर्घ्य देते समय आखिर सुहागिन महिलाएं छलनी से चांद को क्यों देखती हैं, आज हम आपको इसके पीछे का राज बताने जा रहे हैं।

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करवा चौथ व्रत की कथा- धार्मिक मान्यता के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। एक बार साहूकार की बेटी ने मायके आकर अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन बगैर पानी पिए हुए निर्जल व्रत के कारण जब उसकी तबीयत बिगड़ने लगी तो उसके भाईयों ने अपनी प्यारी बहन का व्रत खोलने के लिए एक पेड़ की आड़ में छलनी के पीछे एक जलता हुआ दीपक रख दिया। जिसे देखने के बाद साहूकार की बेटी ने समझा कि चांद निकल आया और उसने उसी को चंद्रमा मानते हुए अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल लिया। मान्यता है कि भाईयों के द्वारा किए गए इस छल से उसका व्रत टूट गया और करवा माता ने नाराज होकर उसके पति के प्राण हर लिए।

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छल से बचने के लिए छलनी से देखा जाता है चांद- मान्यता है कि साहूकार की बेटी ने अपनी व्रत के टूटने को लेकर तुरंत ही करवा माता से क्षमा मांगी और अपनी भूल को सुधारने के लिए अगले साल विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत रखा। इस बार उसने किसी भी छल से बचने के लिए खुद अपने हाथ में छलनी और दीपक रखकर चंद्र देवता के दर्शन किए और उन्हें अर्घ्य दिया। मान्यता है कि विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत रखने पर करवा माता प्रसन्न हुईं और उन्होंने साहूकार की बेटी के पति को फिर से जीवित कर दिया।

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